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तमु॑ त्वा॒ गोत॑मो गि॒रा रा॒यस्का॑मो दुवस्यति। द्यु॒म्नैर॒भि प्र णो॑नुमः ॥

English Transliteration

tam u tvā gotamo girā rāyaskāmo duvasyati | dyumnair abhi pra ṇonumaḥ ||

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Pad Path

तम्। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। गोत॑मः। गि॒रा। रा॒यःऽका॑मः। दु॒व॒स्य॒ति॒। द्यु॒म्नैः। अ॒भि। प्र। नो॒नु॒मः॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:78» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे धनपते (रायस्कामः) धन की इच्छा करनेवाला (गोतमः) विद्वान् मनुष्य ! (गिरा) वाणी से (त्वा) तेरी (दुवस्यति) सेवा करता है वैसे (तम् उ) उसी आपकी (द्युम्नैः) श्रेष्ठ कीर्ति से सह वर्त्तमान हम लोग (अभि) सब ओर से (प्र णोनुमः) अति प्रशंसा करते हैं ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को ऐसा विचार अपने मन में सदैव रखना चाहिये कि परमेश्वर की उपासना और विद्वान् मनुष्य के संग के विना हम लोगों की धन की कामना पूरी कभी नहीं हो सकती ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सः विद्वान् कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे धनेश ! यथा रायस्कामो गोतमो विद्वान् गिरा त्वा दुवस्यति तथा तमु द्युम्नैः सह वर्त्तमानः वयमभिप्रणोनुमः ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (तम्) उक्तार्थम् (उ) वितर्के (त्वा) त्वाम् (गोतमः) विद्यायुक्तो जनः (गिरा) वाचा (रायस्कामः) धनमीप्सुः (दुवस्यति) सेवते (द्युम्नैः) श्रेष्ठैर्यशोभिः (अभि) सर्वतः (प्र) प्रकृष्टे (नोनुमः) प्रशंसामः ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि मनुष्याणां परमेश्वरोपासनेन विद्वत्सहवासेन च विना धनकामपूर्तिर्भवितुं शक्या ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी असा विचार सदैव बाळगला पाहिजे की परमेश्वराची उपासना व विद्वान माणसाशिवाय आपल्या धनाची कामना कधीही पूर्ण होऊ शकत नाही. ॥ २ ॥