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न योरु॑प॒ब्दिरश्व्यः॑ शृ॒ण्वे रथ॑स्य॒ कच्च॒न। यद॑ग्ने॒ यासि॑ दू॒त्य॑म् ॥

English Transliteration

na yor upabdir aśvyaḥ śṛṇve rathasya kac cana | yad agne yāsi dūtyam ||

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Pad Path

न। योः। उ॒प॒ब्दिः। अश्व्यः॑। शृ॒ण्वे। रथ॑स्य। कत्। च॒न। यत्। अ॒ग्ने॒। यासि॑। दू॒त्य॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:74» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य विद्या से प्रकाशित विद्वान् ! आप जैसे (उपब्दि) अत्यन्त शब्द करने (अश्व्यः) शीघ्र चलनेवाले यानों में अत्यन्त वेगकारक (यत्) जिस अग्नियुक्त और (योः) चलने-चलानेवाले (रथस्य) विमानादि यानसमूह के बीच स्थिर होके (दूत्यम्) दूत के तुल्य अपने कर्म को (यासि) प्राप्त होते हो, मैं उस अग्नि के समीप और शब्दों को (कच्चन) कभी (न) नहीं (शृण्वे) सुनता किन्तु प्राप्त होता हूँ, तू भी नहीं सुन सकता, परन्तु प्राप्त हो सकता है ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य लोग शिल्पविद्या से सिद्ध किये हुए यान और यन्त्रादिकों में युक्त अत्यन्त गमन करानेवाले अग्नि के समीपस्थ शब्द के निकट अन्य शब्दों को नहीं सुन सकते ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यथोपब्दिरश्व्यस्त्वं यद्यस्य यो रथस्य मध्ये स्थितः सन् दूत्यं यासि, तस्य समीपेऽन्यान् शब्दानहं कच्चन न शृण्वे तथाहं यामि त्वमपि मा शृणु ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (योः) गच्छतो गमयितुः। अत्र या प्रापण इत्यत्माद्धातोर्बाहुलकादौणादिकः कुः प्रत्ययः। (उपब्दिः) महाशब्दकर्त्ता। उपब्दिरिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (अश्व्यः) अश्वेष्वाशु गच्छत्सु साधुरत्यन्तवेगकारी (शृण्वे) (रथस्य) विमानादियानसमूहस्य (कत्) कदा (चन) अपि (यत्) यस्य (अग्ने) अग्निवद्विद्यया प्रकाशमान (यासि) (दूत्यम्) दूत्यम् कर्म ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नैव मनुष्यैः शिल्पविद्यया संसाधितेषु यानयन्त्रादिषु सम्प्रयुक्तस्यातीव गमयितुरग्नेः समीपेऽन्ये शब्दाः श्रोतुं शक्यन्ते ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांना शिल्पविद्येने सिद्ध केलेल्या यानात व यंत्रामध्ये अत्यंत गमनशील अग्नीजवळ इतर शब्द ऐकता येऊ शकत नाहीत. ॥ ७ ॥