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त्वे अ॑ग्ने सुम॒तिं भिक्ष॑माणा दि॒वि श्रवो॑ दधिरे य॒ज्ञिया॑सः। नक्ता॑ च च॒क्रुरु॒षसा॒ विरू॑पे कृ॒ष्णं च॒ वर्ण॑मरु॒णं च॒ सं धुः॑ ॥

English Transliteration

tve agne sumatim bhikṣamāṇā divi śravo dadhire yajñiyāsaḥ | naktā ca cakrur uṣasā virūpe kṛṣṇaṁ ca varṇam aruṇaṁ ca saṁ dhuḥ ||

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Pad Path

त्वे। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽम॒तिम्। भिक्ष॑माणाः। दि॒वि। श्रवः॑। द॒धि॒रे॒। य॒ज्ञियाः॑। नक्ता॑। च॒। च॒क्रुः। उ॒षसा। विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे। कृ॒ष्णम्। च॒। वर्ण॑म्। अ॒रु॒णम्। च॒। सम्। धु॒रिति॑ धुः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:73» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

वे मनुष्य कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) पढ़ानेहारे विद्वान् ! जो (दिवि) प्रकाशस्वरूप (त्वे) आपके समीप स्थित हुए (भिक्षमाणाः) विद्याओं ही की भिक्षा करनेवाले (यज्ञियासः) अध्ययनरूप कर्मचतुर विद्वान् लोग (सुमतिम्) उत्तमबुद्धि को (दधिरे) धारण करते तथा (श्रवः) श्रवण वा अन्न को (संधुः) धारण करते हैं (नक्ता) रात्री (च) और (उषसा) दिन के साथ (कृष्णम्) श्याम (अरुणम्) लाल (वर्णम्) वर्ण को (च) तथा इनसे भिन्न वर्णों से युक्त पदार्थों को धारण करते हैं (च) और (विरूपे) विरुद्ध रूपों का विज्ञान (चक्रुः) करते हैं, वे सुखी होते हैं ॥ ७ ॥
Connotation: - परमेश्वर की सृष्टि के विज्ञान के विना कोई मनुष्य पूर्ण विद्वान् होने को समर्थ नहीं होता। जैसे रात्री-दिवस भिन्न-भिन्न रूपवाले हैं, वैसे ही अनुकूल और विरुद्ध धर्मादि के विज्ञान से सब पदार्थों को जान के उपयोग में लेवें ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

ते मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! ये दिवि त्वे स्थिता भिक्षमाणाः यज्ञियासः सुमतिं दधिरे श्रवः संधुः नक्तोषसा च सह कृष्णमरुणं च वर्णं चादन्यान् वर्णान् दधिरे विरूपे चक्रुस्ते सुखिनः स्युः ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (त्वे) त्वयि (अग्ने) अध्यापक (सुमतिम्) शोभनां बुद्धिम् (भिक्षमाणाः) लम्भमानाः (दिवि) प्रकाशस्वरूपे (श्रवः) श्रवणमन्नं वा (दधिरे) धरन्ति (यज्ञियासः) यज्ञक्रियाकुशलाः (नक्ता) रात्र्या (च) समुच्चये (चक्रुः) कुर्वन्ति (उषसा) दिनेन सह (विरूपे) विरुद्धरूपे (कृष्णम्) निकृष्टम् (च) समुच्चये (वर्णम्) चक्षुर्विषयम् (अरुणम्) रक्तम् (च) समुच्चये (सम्) सम्यगर्थे (धुः) धरन्ति ॥ ७ ॥
Connotation: - नहि परमेश्वरसृष्टेर्विज्ञानेन विना कश्चिदलं विद्वान् भवितुं शक्नोति। यथा रात्रिंदिवौ विरुद्धरूपे वर्त्तेते तथा साधर्म्यवैधर्म्यादिविचारेण सर्वान् पदार्थान् विद्युः ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - परमेश्वराच्या सृष्टिविज्ञानाशिवाय कोणताही माणूस पूर्ण विद्वान बनण्यास समर्थ होऊ शकत नाही. जसे रात्र व दिवस भिन्न भिन्न रूप असणारे असतात. तसेच साधर्म्य व वैधर्म्य इत्यादीचा विचार करून सर्व पदार्थांना जाणून उपयोग करून घ्यावा. ॥ ७ ॥