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वि पृक्षो॑ अग्ने म॒घवा॑नो अश्यु॒र्वि सू॒रयो॒ दद॑तो॒ विश्व॒मायुः॑। स॒नेम॒ वाजं॑ समि॒थेष्व॒र्यो भा॒गं दे॒वेषु॒ श्रव॑से॒ दधा॑नाः ॥

English Transliteration

vi pṛkṣo agne maghavāno aśyur vi sūrayo dadato viśvam āyuḥ | sanema vājaṁ samitheṣv aryo bhāgaṁ deveṣu śravase dadhānāḥ ||

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Pad Path

वि। पृक्षः॑। अ॒ग्ने॒। म॒घऽवा॑नः। अश्युः॑। वि। सू॒रयः॑। दद॑तः। विश्व॑म्। आयुः॑। स॒नेम॑। वाज॑म्। स॒म्ऽइ॒थेषु॑। अ॒र्यः। भा॒गम्। दे॒वेषु॑। श्रव॑से। दधा॑नाः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:73» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

परमेश्वर और विद्वानों के सङ्ग से मनुष्यों को क्या-क्या प्राप्त होता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) सुखस्वरूप विद्वन् ! आपके उपदेश से जैसे (अर्य्यः) स्वामी वा वैश्य (भागम्) सेवनीय पदार्थों के समान (मघवानः) सत्कारयुक्त धनवाले (ददतः) दानशील (सूरयः) मेधावी लोग (समिथेषु) संग्रामों तथा (देवेषु) विद्वान् वा दिव्यगुणों में (वाजम्) विज्ञान को (दधानाः) धारण करते हुए (श्रवसे) श्रवण करने योग्य कीर्ति के लिये (पृक्षः) अत्युत्तम अन्न और (विश्वम्) सब (आयुः) जीवन को (व्यश्युः) विशेष करके भोगें वा (वि सनेम) विशेष करके सेवन करें, वैसे हम भी किया करें ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य ईश्वर और विद्वानों के सहाय और अपने पुरुषार्थ से सब सुखों को प्राप्त हो सकते हैं, अन्यथा नहीं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तत्कृपासङ्गाभ्यां सह मनुष्यैः किं किं प्राप्यत इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यथाऽर्यो भागं मघवानो ददतः सूरयः समिथेषु देवेषु वाजं दधानाः श्रवसे पृक्षो विश्वमायुश्च व्यश्युस्तथा वयमपि विसनेम ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (वि) विशेषे (पृक्षः) अत्युत्तमान्यन्नानि (अग्ने) सुखरूप विद्वन् (मघवानः) सत्कृतधनाः (अश्युः) भुञ्जते (वि) विशेषार्थे (सूरयः) मेधाविनः (ददतः) दानशीलाः (विश्वम्) अखिलम् (आयुः) जीवनं प्राप्तव्यं वस्तु वा (सनेम) संभजेम (वाजम्) विज्ञानम् (समिथेषु) संग्रामेषु। समिथे इति संग्रामनामसु पठितम्। (निघं०२.१७) (अर्य्यः) स्वामी वणिग्जनो वा। (भागम्) भागसमूहम् (देवेषु) विद्वत्सु दिव्यगुणेषु वा (श्रवसे) श्रूयते येन यशसा तस्मै (दधानाः) धरन्तः ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरीश्वरविद्वत्सहायपुरुषार्थाभ्यां सर्वाणि सुखानि प्राप्यन्ते नान्यथेति ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे ईश्वर व विद्वानांच्या साह्याने व आपल्या पुरुषार्थाने सर्व सुख प्राप्त करू शकतात अन्यथा नाही. ॥ ५ ॥