स्वा॒ध्यो॑ दि॒व आ स॒प्त य॒ह्वी रा॒यो दुरो॒ व्यृ॑त॒ज्ञा अ॑जानन्। वि॒दद्गव्यं॑ स॒रमा॑ दृ॒ळ्हमू॒र्वं येना॒ नु कं॒ मानु॑षी॒ भोज॑ते॒ विट् ॥
svādhyo diva ā sapta yahvī rāyo duro vy ṛtajñā ajānan | vidad gavyaṁ saramā dṛḻham ūrvaṁ yenā nu kam mānuṣī bhojate viṭ ||
सु॒ऽआध्यः॑। दि॒वः। आ। स॒प्त। य॒ह्वीः। रा॒यः। दुरः॑। वि। ऋ॒त॒ऽज्ञाः। अ॒जा॒न॒न्। वि॒दत्। गव्य॑म्। स॒रमा॑। दृ॒ळ्हम्। ऊ॒र्वम्। येन॑। नु। क॒म्। मानु॑षी। भोज॑ते। विट् ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वे ब्रह्म के जाननेवाले विद्वान् कैसे होते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्ते ब्रह्मविदो विद्वांसः कीदृशा भवन्तीत्युपदिश्यते ॥
हे मनुष्या ! यूयं यथा स्वाध्य ऋतज्ञा विद्वांसो येन यह्वीः सप्त दिवो रायो दुरी व्यजानन् येन सरमा मानुषी विट् दृढमूर्वं गव्यं सुखं नु विदत्कं भोजते तथैव तत्कर्म सदा सेवध्वम् ॥ ८ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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