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सं॒जा॒ना॒ना उप॑ सीदन्नभि॒ज्ञु पत्नी॑वन्तो नम॒स्यं॑ नमस्यन्। रि॒रि॒क्वांस॑स्त॒न्वः॑ कृण्वत॒ स्वाः सखा॒ सख्यु॑र्नि॒मिषि॒ रक्ष॑माणाः ॥

English Transliteration

saṁjānānā upa sīdann abhijñu patnīvanto namasyaṁ namasyan | ririkvāṁsas tanvaḥ kṛṇvata svāḥ sakhā sakhyur nimiṣi rakṣamāṇāḥ ||

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Pad Path

स॒म्ऽजा॒ना॒नाः। उप॑। सी॒द॒न्। अ॒भि॒ऽज्ञु। पत्नी॑ऽवन्तः। न॒म॒स्य॑म्। न॒म॒स्य॒न्निति॑ नमस्यन्। रि॒रि॒क्वांसः॑। त॒न्वः॑। कृ॒ण्व॒त॒। स्वाः। सखा॑। सख्युः॑। नि॒ऽमिषि॑। रक्ष॑माणाः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:72» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - जो (संजानानाः) अच्छी प्रकार जानते हुए (पत्नीवन्तः) प्रशंसा योग्य विद्यायुक्त यज्ञ की जाननेवाली स्त्रियों के सहित (रक्षमाणाः) धर्म और विद्या की रक्षा करते हुए विद्वान् लोग (रिरिक्वांसः) विशेष करके पापों से पृथक् (अभिज्ञु) जङ्घाओं से (उपसीदन्) सन्मुख समीप बैठना जानते हैं तथा (नमस्यम्) नमस्कार करने योग्य परमेश्वर और पढ़ानेवाले विद्वान् का (नमस्यन्) सत्कार करते और (निमिषि) अधिक विद्या के होने के लिये स्पर्द्धायुक्त निरन्तर व्यवहार में क्षण-क्षण में (सख्युः) मित्र के (सखा) मित्र के समान (स्वाः) अपने (तन्वः) शरीरों को (कृण्वत) बलयुक्त और रोगरहित करते हैं, वे मनुष्य भाग्यशाली होते हैं ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेष और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। ईश्वर और विद्वान् के सत्कार करने के विना किसी मनुष्य को विद्या के पूर्ण सुख नहीं हो सकते, इसलिए मनुष्यों को चाहिये कि सत्कार करने योग्य ही मनुष्यों का सत्कार और अयोग्यों का असत्कार करें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा भवेयुरित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

ये संजानानाः पत्नीवन्तो धर्मविद्ये रक्षमाणा अधर्माद्रिरिक्वांसो विद्वांसोऽभिज्ञूपसीदन्नमस्यं नमस्यन्निमिषि सख्युः सखेव स्वास्तन्वः कृण्वत ते भाग्यशालिनो भवन्ति ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (संजानानाः) सम्यग्जानन्तः। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (उप) सामीप्ये (सीदन्) तिष्ठन्ति (अभिज्ञु) अभितो जानुनी यस्य तम् (पत्नीवन्तः) प्रशस्ता विद्यायुक्ता यज्ञसम्बन्धिन्यः स्त्रियो विद्यन्ते येषान्ते (नमस्यम्) परमेश्वरमध्यापकं विद्वांसं वा नमस्कारार्हम् (नमस्यन्) सत्कुर्वन्ति (रिरिक्वांसः) अधर्माद्विनिर्गताः। अत्र न्यङ्क्कादित्वात्कुत्वम्। (तन्वः) बलारोग्ययुक्तास्ते (कृण्वते) कुर्वन्ति (स्वाः) स्वकीयाः (सखा) सुहृत् (सख्युः) सुहृदः (निमिषि) विद्याधिक्याय स्पर्धिते सन्तते व्यवहारे (रक्षमाणाः) रक्षां कुर्वन्तः ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहीश्वरविदुषोः सत्कारेण विना कस्यचिद् विद्यासुखानि प्रजायन्ते, तस्मात् सत्कर्त्तुं योग्यानामेव सत्कारः सदैव कर्तव्यः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेष व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. ईश्वर व विद्वानाचा सत्कार केल्याशिवाय कोणत्याही माणसाला विद्येचे पूर्ण सुख मिळू शकत नाही. त्यासाठी माणसांनी सत्कार करण्यायोग्य माणसांचा सत्कार करावा व अयोग्य लोकांचा सत्कार करू नये. ॥ ५ ॥