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दध॑न्नृ॒तं ध॒नय॑न्नस्य धी॒तिमादिद॒र्यो दि॑धि॒ष्वो॒३॒॑ विभृ॑त्राः। अतृ॑ष्यन्तीर॒पसो॑ य॒न्त्यच्छा॑ दे॒वाञ्जन्म॒ प्रय॑सा व॒र्धय॑न्तीः ॥

English Transliteration

dadhann ṛtaṁ dhanayann asya dhītim ād id aryo didhiṣvo vibhṛtrāḥ | atṛṣyantīr apaso yanty acchā devāñ janma prayasā vardhayantīḥ ||

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Pad Path

दध॑न्। ऋ॒तम्। ध॒नय॑न्। अ॒स्य॒। धी॒तिम्। आत्। इत्। अ॒र्यः। दि॒धि॒ष्वः॑। विऽभृ॑त्राः। अतृ॑ष्यन्तीः। अ॒पसः॑। य॒न्ति। अच्छ॑। दे॒वान्। जन्म॑। प्रय॑सा। व॒र्धय॑न्तीः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:71» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

जैसे ब्रह्मचर्याश्रम का सेवन करके पुरुष विद्वान् होते हैं, वैसे स्त्रियों को भी होना योग्य है, यह विषय कहा है ॥

Word-Meaning: - जो (विभृत्राः) विशेष धारण करनेवाली (दिधिष्वः) भूषण आदि से युक्त (अतृष्यन्तीः) तृष्णा आदि दोषों से पृथक् (वर्धयन्तीः) उन्नति करनेवाली कुमारी कन्या (देवान्) दिव्य गुणों को प्राप्त होकर (अर्य्यः) वैश्य के (इत्) समान (ऋतम्) सत्य विज्ञान को (धनयन्) विद्याधनयुक्त कर (आत्) इसके अनन्तर (अस्य) ब्रह्मचर्य की (धीतिम्) धारणा को (दधन्) धारण कर (प्रयसा) अन्न के समान वर्त्तमान (अपसः) कर्म्म (देवान्) विद्वान् (जन्म) और विद्या की प्राप्ति को (अच्छ) अच्छे प्रकार (यन्ति) प्राप्त होती हैं, वेदादि शास्त्रों में विद्वान् होकर सब सुखों को प्राप्त होती हैं ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे वैश्य लोग धर्म्म के अनुकूल धन का संचय करते हैं, वैसे ही कन्या विवाह से पहले ब्रह्मचर्यपूर्वक पूर्ण विद्वान् पढ़ानेवाली स्त्रियों को प्राप्त हो पूर्णशिक्षा और विद्या का ग्रहण तथा विवाह करके प्रजासुख को सम्पादन करे। विवाह के पीछे विद्याध्ययन का समय नहीं समझना चाहिये। किसी पुरुष वा स्त्री को विद्या के पढ़ने का अधिकार नहीं है, ऐसा किसी को नहीं समझना चाहिये, किन्तु सर्वथा सबको पढ़ने का अधिकार है ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

यथा पुरुषा ब्रह्मचर्यं सेवित्वा विद्वांसो भवन्ति तथा स्त्रियोऽपि भवेयुरित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

या विभृत्रा दिधिष्वोऽतृष्यन्त्यो वर्धयन्त्यः कुमार्यो देवान् प्राप्यार्य्य इदिव ऋतं धनयन्नादस्य धीतिं दधन् प्रयसाऽपसो देवाञ्जन्माच्छादयन्ति। ता विदुष्यो भूत्वा वेदादिषु सर्वाणि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (दधन्) दधीरन् (ऋतम्) सत्यं विज्ञानम् (धनयन्) विद्यादिधनं कुर्युः (अस्य) ब्रह्मचर्य्यस्य धर्मस्य विद्यादिधनस्य वा (धीतिम्) धारणम् (आत्) अनन्तरम् (इत्) इव (अर्य्यः) वैश्यः (दिधिष्वः) धारयन्त्यः (विभृत्राः) विशिष्टानि भृत्राणि धारणानि यासां ताः (अतृष्यन्तीः) तृष्णादिदोषरहिताः (अपसः) कर्माणि। अत्र लिङ्गव्यत्ययः। (यन्ति) प्राप्नुवन्ति वा (अच्छ) सम्यग्रीत्या (देवान्) विदुषो दिव्यान् गुणान् वा (जन्म) विद्याजननम् (प्रयसा) येन प्रीणन्ति तृप्यन्ति कामयन्ते वा शिष्टान् विदुषः शुभान् गुणांस्तेन सह वर्त्तमानाः (वर्धयन्तीः) उन्नयन्त्यः ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा वैश्या धर्मं धृत्वा धनमर्जयन्ति तथैव कन्या विवाहात् प्राक् सुब्रह्मचर्य्येणाप्ता विदुष्योऽध्यापिकाः प्राप्य पूर्णां सुशिक्षां विद्यां चादायाथ विवाहं कृत्वा प्रजासुखं स्वार्जयेयुः। नहि विद्याध्ययनस्य समयो विवाहादर्वागस्ति न खलु कस्यचित्पुरुषस्य स्त्रिया वा विद्याग्रहणेऽनधिकारोऽस्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे वैश्य लोक धर्मानुकूल धनाचा संचय करतात तसा कन्यांनी पूर्ण विदुषी अध्यापिकेकडून पूर्ण शिक्षण व विद्या ग्रहण करून विवाह करावा व संतानोत्पत्ती करावी. विवाहानंतर विद्याध्ययनाची आवश्यकता नाही असे समजू नये. कोणत्याही पुरुष-स्त्रीला विद्याध्ययनाचा अधिकार नाही असे समजू नये, तर सर्वांना सदैव शिकण्याचा अधिकार आहे. ॥ ३ ॥