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व॒नेम॑ पू॒र्वीर॒र्यो म॑नी॒षा अ॒ग्निः सु॒शोको॒ विश्वा॑न्यश्याः ॥

English Transliteration

vanema pūrvīr aryo manīṣā agniḥ suśoko viśvāny aśyāḥ ||

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Pad Path

व॒नेम॑। पू॒र्वीः। अ॒र्यः। म॒नी॒षा। अ॒ग्निः। सु॒शोकः॑। विश्वा॑नि। अ॒श्याः॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:70» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ७० सत्तरवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है, इसके पहिले मन्त्र में मनुष्यों के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हम लोग जो (सुशोकः) उत्तम दीप्तियुक्त (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (अग्निः) ज्ञान आदि गुणवाला (अर्य्यः) ईश्वर वा मनुष्य (मनीषा) बुद्धि तथा विज्ञान से (पूर्वीः) पूर्व हुई प्रजा और (विश्वानि) सब (दैव्यानि) दिव्य गुण वा कर्मों से सिद्ध हुए (व्रता) विद्याधर्मानुष्ठान और (मानुषस्य) मनुष्य जाति में हुए (जनस्य) श्रेष्ठ विद्वान् मनुष्य के (जन्म) शरीरधारण से उत्पत्ति को (अश्याः) अच्छी प्रकार प्राप्त कराता है, उसका (आ वनेम) अच्छे प्रकार विभाग से सेवन करें ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को जिस जगदीश्वर वा मनुष्य के कार्य्य, कारण और जीव प्रजा शुद्ध गुण और कर्मों को व्याप्त किया करे, उसी की उपासना वा सत्कार करना चाहिये, क्योंकि इसके विना मनुष्यजन्म ही व्यर्थ जाता है ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्यगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

वयं यः सुशोकश्चिकित्वानग्निरर्य्य ईश्वरो जीवो वा मनीषया पूर्वीः प्रजा विश्वानि दैव्यानि व्रता मानुषस्य जन्म चाश्याः समन्ताद् व्याप्नोति तमा वनेम ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (वनेम) संविभागेनानुष्ठेम (पूर्वीः) पूर्वभूताः प्रजाः (अर्य्यः) स्वामीश्वरो जीवो वा। अर्य्य इतीश्वरनामसु पठितम्। (निघं०२.२२) (मनीषा) मनीषया विज्ञानेन (अग्निः) ज्ञानादिगुणवान् (सुशोकः) शोभनाः शोका दीप्तयो यस्य सः (विश्वानि) सर्वाणि भूतानि कर्माणि वा (अश्याः) व्याप्नुहि (आ) समन्तात् (दैव्यानि) दिव्यैर्गुणैः कर्मभिर्वा निर्वृत्तानि (व्रता) विद्याधर्मानुष्ठानशीलानि (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (आ) आभिमुख्ये (मानुषस्य) मनुष्यजातौ भवस्य (जनस्य) श्रेष्ठस्य देवस्य मनुष्यस्य (जन्म) शरीरधारणेन प्रादुर्भवम् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैर्येन जगदीश्वरेण मनुष्येण वा कारणकार्यजीवाख्याः शुद्धाः गुणाः कर्म्माणि व्याप्तानि स चोपास्यः सत्कर्त्तव्यो वास्ति नह्येतेन विना मनुष्यजन्मसाफल्यं जायते ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ईश्वर, मनुष्य व सभा इत्यादी अध्यक्षाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. ज्या जगदीश्वराने कार्य, कारण, जीवांना तसेच माणसाच्या शुभ गुण कर्मांना व्याप्त केलेले आहे. त्या परमेश्वराची उपासना व उचित कर्तव्य केले पाहिजे. त्याशिवाय मनुष्य जन्माचे सार्थक होत नाही. ॥ १ ॥