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पि॒तुर्न पु॒त्राः क्रतुं॑ जुषन्त॒ श्रोष॒न्ये अ॑स्य॒ शासं॑ तु॒रासः॑ ॥

English Transliteration

pitur na putrāḥ kratuṁ juṣanta śroṣan ye asya śāsaṁ turāsaḥ ||

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Pad Path

पि॒तुः। न। पु॒त्राः। क्रतु॑म्। जु॒ष॒न्त॒। श्रोष॑न्। ये। अ॒स्य॒। शास॑म्। तु॒रासः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:68» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:9 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे पढ़ने और पढ़ाने हारे कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (ये) जो (तुरासः) अच्छे कर्मों को शीघ्र करनेवाले मनुष्य (पितुः) पिता के (पुत्राः) पुत्रों के (न) समान (अस्य) जगदीश्वर वा सत्पुरुष की (शासम्) शिक्षा को (श्रोषन्) सुनते हैं, वे सुखी होते हैं। जो (दमूनाः) शान्तिवाला (पुरुक्षुः) बहुत अन्नादि पदार्थों से युक्त (स्तृभिः) प्राप्त करने योग्य गुणों से (रायः) धनों के (व्यौर्णोत्) स्वीकारकर्त्ता तथा (नाकम्) सुख को स्वीकार कर और (दुरः) हिंसा करनेवाले शत्रुओं के (पिपेश) अवयवों को पृथक्-पृथक् करता है, उसी की सेवा सब मनुष्य करें ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को चाहिये कि ईश्वर की आज्ञा पालने विना किसी मनुष्य का कुछ भी सुख सम्भव नहीं होता तथा जितेन्द्रियता आदि गुणों के विना किसी मनुष्य को सुख प्राप्त नहीं हो सकता। इससे ईश्वर की आज्ञा और जितेन्द्रियता आदि का सेवन अवश्य करें ॥ ५ ॥ इस सूक्त में ईश्वर और अग्नि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

ये तुरासो मनुष्याः पितुः पुत्रानेवास्य शासं श्रोषन् शृण्वन्ति ते सुखिनो भवन्तु। यो दमूनाः पुरुक्षुः स्तृभी रायो व्यौर्णोन्नाकं च दुरः पिपेश स सर्वैर्मनुष्यैः सेवनीयः ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (पितुः) जनकस्य (न) इव (पुत्राः) औरसाः। पुत्रः पुरु त्रायते निपरणाद्वा पुं नरकं ततस्त्रायत इति वा। (निरु०१.११) (क्रतुम्) कर्म प्रज्ञां वा (जुषन्त) सेवन्ताम् (श्रोषन्) शृण्वन्तु (ये) मनुष्याः (अस्य) जगदीश्वरस्याप्तस्य वा (शासम्) शासनम् (तुरासः) शीघ्रकारिणः (वि) विशेषार्थे (रायः) धनानि (और्णोत्) स्वीकरोति (दुरः) हिंसकान् (पुरुक्षुः) पुरूणि क्षूण्यन्नानि यस्य सः (पिपेश) पिंशत्यवयवान् प्राप्नोति (नाकम्) बहुसुखम् (स्तृभिः) प्राप्तव्यैर्गुणैः (दमूनाः) उपशमयुक्तः। दमूना दममना वा दानमना वा दान्तमना वा। (निरु०४.४) ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषोपमालङ्कारौ। मनुष्यैर्नहीश्वराप्ताज्ञापालनेन विना कस्यचित् किंचिदपि सुखं प्राप्तुं शक्नोति नहि जितेन्द्रियत्वादिभिर्विना कश्चित्सुखं प्राप्तुमर्हति। तस्मादेतत्सर्वं सर्वदा सेवनीयम् ॥ ५ ॥ अत्रेश्वरग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥