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भज॑न्त॒ विश्वे॑ देव॒त्वं नाम॑ ऋ॒तं सप॑न्तो अ॒मृत॒मेवैः॑ ॥

English Transliteration

bhajanta viśve devatvaṁ nāma ṛtaṁ sapanto amṛtam evaiḥ ||

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Pad Path

भज॑न्त। विश्वे॑। दे॒व॒ऽत्वम्। नाम॑। ऋ॒तम्। सप॑न्तः। अ॒मृत॑म्। एवैः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:68» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर जगदीश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (देव) जगदीश्वर ! आपका आश्रय करके (यत्) जो (विश्वे) सब (जनिष्ठाः) अतिज्ञान युक्त (सपन्तः) एक सम्मत विद्वान् लोग (एवैः) प्राप्तिकारक गुणों और (शुष्कात्) धर्मानुष्ठान के तप से (वा नीरस काष्ठादि से) (ते) आपके (देवत्वम्) दिव्य गुण प्राप्त करनेवाले (क्रतुम्) बुद्धि और कर्म (नाम) प्रसिद्ध अर्थयुक्त संज्ञा को सिद्ध (जुषन्त) प्रीति से सेवा करें, वे (ऋतम्) सत्य रूप को (भजन्त) सेवन करते हैं, वैसे (अमृतम्) मोक्ष को (जीवः) इच्छादि गुणवाला चेतनस्वरूप मनुष्य (आत्) इसके अनन्तर (इत्) ही इस सबको प्राप्त हो ॥ २ ॥
Connotation: - मनुष्य परमेश्वर की उपासना वा आज्ञानुष्ठान के विना व्यवहार और परमार्थ के सुखों को प्राप्त नहीं हो सकते ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्जगदीश्वरः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे देव जगदीश्वर ! त्वामाश्रित्य यद्ये विश्वे सर्वे जनिष्ठाः सपन्तो विद्वांस एवैः शुष्कान् ते देवत्वं क्रतुं नाम जुषन्त ते ऋतममृतं भजन्त सेवन्ते तथा जीवआदिरेतत्सर्वं प्रयत्नेन प्राप्नुयात् ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (आत्) अनन्तरम् (इत्) एव (ते) तव तस्य वा (विश्वे) अखिलाः (क्रतुम्) प्रज्ञापनं कर्म वा (जुषन्त) प्रीणन्ति सेवन्ते वा (शुष्कात्) धर्मानुष्ठानतपसो नीरसात् काष्ठादेः (यत्) ये (देव) जगदीश्वर (जीवः) इच्छादिगुणविशिष्टश्चेतनः (जनिष्ठाः) अतिशयेन प्रकटाः (भजन्त) सेवन्ते (विश्वे) सम्पूर्णाः (देवत्वम्) देवस्य भावः (नाम) प्रसिद्धम् (ऋतम्) सत्यम् (सपन्तः) समवयन्तः (अमृतम्) मरणजन्मदुःखादिदोषरहितम् (एवैः) ज्ञापकैः प्रापकैर्गुणैः ॥ २ ॥
Connotation: - नहि मनुष्याः परमेश्वरोपासनाऽज्ञानुष्ठानेन विना व्यवहारपरमार्थसुखं प्राप्तुमर्हन्तीति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी परस्पर मित्र बनावे व संपूर्ण विद्यांना तात्काळ जाणून निरंतर आनंद भोगावा. ॥ ४ ॥