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परि॒ यदे॑षा॒मेको॒ विश्वे॑षां॒ भुव॑द्दे॒वो दे॒वानां॑ महि॒त्वा ॥

English Transliteration

pari yad eṣām eko viśveṣām bhuvad devo devānām mahitvā ||

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Pad Path

परि॑। यत्। ए॒षा॒म्। एकः॑। विश्वे॑षाम्। भुव॑त्। दे॒वः। दे॒वाना॑म्। म॒हि॒ऽत्वा ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:68» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे ईश्वर और विद्युत् अग्नि कैसे गुणवाले हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (यत्) जो (भुरण्युः) धारण वा पोषण करनेवाला (श्रीणन्) परिक्व करता हुआ मनुष्य (दिवम्) प्रकाश करनेवाले परमेश्वर वा विद्युत् अग्नि के (उप स्थात्) उप स्थित होवे और (स्थातुः) स्थावर (चरथम्) जङ्गम तथा (अक्तून्) प्रकट प्राप्त करने योग्य पदार्थों को (पर्यूर्णोत्) आच्छादन वा स्वीकार करता है वह (एषाम्) इन वर्त्तमान (विश्वेषाम्) सब (देवानाम्) विद्वानों के बीच (एकः) सहायरहित (देवः) दिव्यगुणयुक्त (महित्वा) पूजा को प्राप्त होकर (विभुवत्) विभव अर्थात् ऐश्वर्य को प्राप्त होवे ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। कोई परमेश्वर की उपासना वा विद्युत् अग्नि के आश्रय को छोड़कर सब परमार्थ और व्यवहार के सुखों को प्राप्त होने को योग्य नहीं हो सकता ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यद्यो भुरण्युः श्रीणन्मनुष्यो दिवं द्योतनात्मकं परमेश्वरं विद्युतं वा पर्युपस्थात् स्थातुः स्थावरं चरथमक्तूंश्च पर्यूर्णोत् स एषां विश्वेषां देवानामेको महित्वा भुवद्विभवेत् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (श्रीणन्) परिपक्वं कुर्वन् (उप) सामीप्ये (स्थात्) तिष्ठेत् (दिवम्) प्रकाशस्वरूपम् (भुरण्युः) धर्त्ता पोषको वा। अत्र भुरणधातोः कण्ड्वादित्वाद् यक् तत उः। (स्थातुः) स्थावरसमूहम्। अत्र स्थाधातोस्तुः सुपां सुलुगित्यमः स्थाने सुश्च। (चरथम्) जङ्गमसमूहम् (अक्तून्) व्यक्तान् प्राप्तव्यान् सर्वान् पदार्थान् (वि) विशेषार्थे (ऊर्णोत्) ऊर्णोत्याच्छादयति स्वीकरोति (परि) सर्वतः (यत्) यः (एषाम्) वर्त्तमानानां मनुष्याणां मध्ये (एकः) कश्चित् (विश्वेषाम्) सर्वेषाम् (भुवत्) (देवः) दिव्यगुणसम्पन्नो विद्वान् (देवानाम्) विदुषां मध्ये (महित्वा) पूजितो भूत्वा ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। नहि कश्चित्परमेश्वरमनुपास्य विद्युद्विद्यामनाश्रित्य सर्वाणि पारमार्थिकव्यावहारिकसुखानि प्राप्तुमर्हति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसे परमेश्वराची उपासना व आज्ञानुष्ठानाशिवाय व्यवहार व परमार्थाचे सुख प्राप्त करू शकत नाहीत. ॥ २ ॥