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वि ये चृ॒तन्त्यृ॒ता सप॑न्त॒ आदिद्वसू॑नि॒ प्र व॑वाचास्मै ॥

English Transliteration

vi ye cṛtanty ṛtā sapanta ād id vasūni pra vavācāsmai ||

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Pad Path

वि। ये। चृ॒तन्ति॑। ऋ॒ता। सप॑न्तः। आत्। इत्। वसू॑नि। प्र। व॒वा॒च॒। अ॒स्मै ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:67» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:8 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी ईश्वर और विद्वान् के गुणों का उपदेश करते हैं ॥

Word-Meaning: - (यः) जो मनुष्य (गुहा) बुद्धि तथा विज्ञान में (ईम्) विज्ञानस्वरूप (भवन्तम्) जगदीश्वर वा सभाध्यक्ष को (चिकेत) जानता है (यः) जो (ऋतस्य) सत्य विद्यारूप चारों वेद वा जल के (धाराम्) वाणी वा प्रवाह को (आ ससाद) प्राप्त कराता है (ये) जो मनुष्य (ऋता) सत्यों को (सपन्तः) संयुक्त करते हुए (वसूनि) विद्या, सुवर्ण आदि धनों को (विचृतन्ति) ग्रन्थियुक्त करते हैं, जिसलिये परमेश्वर ने (प्र ववाच) कहा है (आत्) इसके पीछे (इत्) उसी के लिये सब सुख प्राप्त होते हैं ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। किसी मनुष्य को परमेश्वर की उपासना वा विज्ञान, सत्यविद्या और उत्तम आचरणों के विना सुख प्राप्त नहीं हो सकते ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यो मनुष्यो गुहाभवन्तमीं ज्ञानस्वरूपमीश्वरं विद्वांसं ज्ञापकमुदकं वा चिकेत जानाति। य ऋतस्य धारामाससाद ये ऋता सपन्तो वसूनि विचृतन्ति। यस्मै परमेश्वरः प्रववाचादनन्तरमस्मायिदेव सर्वाणि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (यः) मनुष्यः (ईम्) विज्ञानमुदकं वा (चिकेत) जानाति (गुहा) बुद्धौ विज्ञाने (भवन्तम्) सन्तं जगदीश्वरं सभाद्यध्यक्षं वा (आ) समन्तात् (यः) (ससाद) अवसादयति (धाराम्) वाचं प्रवाहं वा। धारेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (ऋतस्य) सत्यविद्यामयस्य वेदचतुष्टयस्य जलस्य वा (वि) विशेषे (ये) मनुष्याः (चृतन्ति) ग्रथ्नन्ति (ऋता) ऋतानि सत्यानि (सपन्तः) समवयन्तः (आ) अनन्तरे (इत्) एव (वसूनि) विद्यासुवर्णादिधनानि (प्र) प्रकृष्टे (ववाच) उक्तवान्। सम्प्रसारणाच्चेत्यत्र वाच्छन्दसीत्युनवर्त्तनाद् यणादेशः। (अस्मै) मनुष्याय ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। नहि कस्यचित्परमेश्वरोपासनविज्ञानाभ्यां सत्यविद्याचरणाभ्यां च विना सुखानि यथावन्निर्विघ्नतया भवितुं शक्यन्ते ॥ ४ ॥