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ऋषि॒र्न स्तुभ्वा॑ वि॒क्षु प्र॑श॒स्तो वा॒जी न प्री॒तो वयो॑ दधाति ॥

English Transliteration

ṛṣir na stubhvā vikṣu praśasto vājī na prīto vayo dadhāti ||

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Pad Path

ऋषिः॑। न। स्तुभ्वा॑। वि॒क्षु। प्र॒ऽश॒स्तः। वा॒जी। न। प्री॒तः। वयः॑। द॒धा॒ति॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:66» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह मनुष्य कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - जो मनुष्य (ओकः) घर के (न) समान (रण्वः) रमणीयस्वरूप (पक्वः) पके (यवः) सुख करनेवाले यव के (न) समान (ऋषिः) मन्त्रों के अर्थ को जाननेवाले विद्वान् के (न) समान (स्तुभ्वा) सत्कार के योग्य (वाजी) वेगवान् घोड़े के समान (प्रीतः) कमनीय (विक्षु) प्रजाओं में (प्रशस्त) श्रेष्ठ (जनानाम्) मनुष्य आदि प्राणियों को (जेता) सुख प्राप्त करानेवाला (वयः) जीवन (दधाति) धारण करता है, वह (क्षेमम्) रक्षा को (दाधार) धारण करता है ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य जीवन के निमित्त ब्रह्मचर्य्यादि कर्मों को काम की सिद्धि के लिये अच्छे प्रकार जानके युक्तिपूर्वक आहार और विहार के अर्थ यथायोग्य पदार्थों को धारण करते हैं, वे बहुत काल पर्यन्त जी के सदा सुखी होते हैं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स मनुष्यः कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यो मनुष्य ओको नेव रण्वः पक्वो यवो नेव पक्वऋषिर्नेव स्तुभ्वा वाजी नेव प्रीतो विक्षु प्रशस्तो जनानां जेता वयो दधाति स क्षेमं दाधार ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (दाधार) धरेत्। अत्र तुजादित्वाद् दीर्घोऽभ्यासः। (क्षेमम्) कल्याणकरं रक्षणम् (ओकः) गृहम् (न) इव (रण्वः) रमणीयः (यवः) सुखकारी धान्यविशेषः (न) इव (पक्वः) उपभोक्तुमर्हः (जेता) उत्कर्षत्वप्रापकः (जनानाम्) मनुष्यादीनाम् (ऋषिः) मन्त्रार्थद्रष्टा विद्वान् विद्याप्रकाशकः (न) इव (स्तुभ्वा) अर्चकः। स्तोभतीत्यर्चतिकर्मसु पठितम्। (निघं०३.१४) (विक्षु) उत्पन्नासु प्रजासु (प्रशस्तः) श्रेष्ठः (वाजी) वेगवानश्वः (न) इव (प्रीतः) कमनीयः (वयः) जीवनम् (दधाति) धरेत् ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्या जीवनहेतून् ब्रह्मचर्यादीन् सम्यग् विज्ञाय कार्य्यसिद्धये संप्रयुञ्जते युक्ताहारविहारायोपयुक्तान् पदार्थान् धरन्ति, ते दीर्घायुषो भूत्वा सदा सुखिनो भवन्ति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणावे की विद्येमुळे सम्यक प्रयत्नाने जसे प्रशिक्षणयुक्त सिद्ध सेना शत्रूंना जिंकून विजय मिळविते. जसे धनुर्वेदविद् शत्रूंवर अस्र शस्त्र सोडून त्यांचे छेदन करून त्यांना पलायन करण्यास भाग पाडतात. तसेच उत्तम सेनापती सर्व दुःखांचा नाश करतो. हे तुम्ही जाणा. ॥ ४ ॥