Go To Mantra

यद्वात॑जूतो॒ वना॒ व्यस्था॑द॒ग्निर्ह॑ दाति॒ रोमा॑ पृथि॒व्याः ॥

English Transliteration

yad vātajūto vanā vy asthād agnir ha dāti romā pṛthivyāḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

यत्। वात॑ऽजूतः। वना॑। वि। अस्था॑त्। अ॒ग्निः। ह॒। दा॒ति॒। रोम॑। पृ॒थि॒व्याः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:65» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:8 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:8


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब भौतिक अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - (यत्) जो (वातजूतः) वायु से वेग को प्राप्त हुआ (अग्निः) अग्नि (वना) वनों का (दाति) छेदन करता तथा (पृथिव्याः) पृथिवी के (ह) निश्चय करके (रोमा) रोमों के समान छेदन करता है, वह (सिन्धूनाम्) समुद्र और नदियों के (जामिः) सुख प्राप्त करानेवाला बन्धु (स्वस्राम्) बहिनों के (भ्रातेव) भाई के समान तथा (इभ्यान्) हाथियों की रक्षा करनेवाले पीलवानों को (राजेव) राजा के समान (व्यस्थात्) स्थित होता और (वनानि) वनों को (व्यत्ति) अनेक प्रकार भक्षण करता है ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में दो उपमालङ्कार हैं। जब मनुष्य लोग यानचालन आदि कार्यों में वायु से संयुक्त किये हुए अग्नि को चलाते हैं, तब वह बहुत कार्यों को सिद्ध करता है, ऐसा सब मनुष्यों को जानना चाहिये ॥ ४ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्भौतिकोऽग्निः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यद्यो वातजूतोऽग्निर्वनानि दाति छिनत्ति पृथिव्या ह किल रोमाणि दाति छिनत्ति स सिन्धूनां जामिः। स्वस्रां भगिनीनां भ्रातेवेभ्यान् राजानेव व्यस्थात् वनानि व्यत्ति ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (जामिः) सुखप्रापको बन्धुः (सिन्धूनाम्) नदीनां समुद्राणां वा (भ्रातेव) सनाभिरिव (स्वस्राम्) स्वसॄणां भगिनीनाम्। अत्र वाच्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीति नुडभावः। (इभ्यान्) य इभान् हस्तिनो नियन्तुमर्हन्ति तान् (न) इव (राजा) नृपः (वनानि) अरण्यानि (अत्ति) भक्षयति (यत्) यः (वातजूतः) वायुना वेगं प्राप्तः (वना) वनानि जङ्गलानि (वि) विविधार्थे (अस्थात्) तिष्ठति (अग्निः) प्रसिद्धः पावकः (ह) किल (दाति) छिनत्ति (रोमा) रोमाण्योषध्यादीनि (पृथिव्याः) भूमेः ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र द्वावुपमालङ्कारौ। यदा मनुष्यैर्यानचालनादिकार्य्येषु वायुसंप्रयुक्तोऽग्निश्चाल्यते, तदा स बहूनि कार्य्याणि साधयतीति बोद्धव्यम् ॥ ४ ॥