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ऋ॒तस्य॑ दे॒वा अनु॑ व्र॒ता गु॒र्भुव॒त्परि॑ष्टि॒र्द्यौर्न भूम॑ ॥

English Transliteration

ṛtasya devā anu vratā gur bhuvat pariṣṭir dyaur na bhūma ||

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Pad Path

ऋ॒तस्य॑। दे॒वाः। अनु॑। व्र॒ता। गुः॒। भुव॑त्। परि॑ष्टिः। द्यौः। न। भूम॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:65» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसको किस प्रकार हम लोग जानें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (न) जैसे विद्वान् लोग (परिष्टिः) सब प्रकार खोजने योग्य (द्यौः) सूर्य्य के प्रकाश के तुल्य (भुवत्) होकर व पदार्थों को दृष्टिगोचर करते हैं, वैसे (ऋतस्य) सत्य धर्म स्वरूप आज्ञा विज्ञान से (व्रता) सत्यभाषण आदि नियमों को (अनुगुः) प्राप्त होकर आचरण करते हैं, तथा जैसे ये (ऋतस्य) कारणरूपी सत्य की (योना) योनि अर्थात् निमित्त में स्थित (सुजातम्) अच्छी प्रकार प्रसिद्ध (सुशिश्विम्) अच्छे पढ़ानेवाले सभापति की (पन्वा) स्तुति करने योग्य कर्म्म से (ईम्) पृथिवी को (आपः) जल वा प्राण को (वर्धन्ति) बढ़ा कर ज्ञानयुक्त कर देते हैं, वैसे हम लोग (भूम) होवें और तुम भी होओ ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य के प्रकाश से सब पदार्थ दृष्टि में आते हैं, वैसे ही विद्वानों के संग से वेदविद्या के उत्पन्न होने और धर्म्माचरण की प्रवृत्ति में परमेश्वर और बिजुली आदि पदार्थ अपने-अपने गुण, कर्म, स्वभावों से अच्छे प्रकार देखे जाते हैं, ऐसा तुम लोग जान कर अपने विचार से निश्चित करो ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तं कीदृशं विजानीम इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! देवा विद्वांसः परिष्टिः द्यौर्भुवन्नेवर्त्तस्य व्रताऽनुगुरनुगम्याचरन्ति। यथैत ऋतस्य योना स्थितं सुजातं सुशिश्विं सभेशं पन्वा वर्धयन्ति विद्युतमीं पृथिवीं चापश्च तथैव वयं भूम भवेम यूयमपि भवत ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (ऋतस्य) सत्यस्वरूपस्य (देवाः) विद्वांसः (अनु) पश्चात् (व्रता) सत्यभाषणादीनि व्रतानि (गुः) गच्छन्ति। अत्राडभावो लडर्थे लुङ् च। (भुवत्) भवति (परिष्टिः) परितः पर्वतः इष्टिरन्वेषणं यस्याः सा। अत्र एमन्नादिषु पररूपं वक्तव्यम्। (अष्टा०वा०६.१.१४) इति वार्त्तिकेन पररूप एकादेशः। (द्यौः) सूर्यद्युतिः (न) इव (भूम) भवेम (वर्धन्ति) वर्धन्ते। अत्र व्यत्येन परस्मैपदम्। (ईम्) पृथिवीम् (आपः) जलानि (पन्वा) स्तुत्येन कर्मणा (सुशिश्विम्) सुष्ठु वर्धकम्। छन्दसि सामान्येन विधानादत्र किः प्रत्ययः। (ऋतस्य) सत्यस्य कारणस्य (योना) योनौ निमित्ते सति (गर्भे) सर्वपदार्थान्तःस्थाने (सुजातम्) सुष्ठु प्रसिद्धम् ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या यथा सूर्य्यप्रकाशेन सर्वे पदार्थाः सदृश्या भवन्ति, तथैव विदुषां सङ्गेन वेदविद्यायां जातायां धर्माचरणे कृते परमेश्वरो विद्युदादयश्च स्वगुणकर्मस्वभावः सम्यग्दृष्टा भवन्तीति यूयं विजानीत ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. एखादा विद्वान माणूस परमेश्वराला प्राप्त करून व विद्युतरूपी अग्नीला जाणून त्याच्याकडून उपकार घेण्यास समर्थ होतो. जशी उत्तम पुष्टी, पृथ्वीचे राज्य, मेघांची वृष्टी, उत्तम जल, उत्तम अश्व व समुद्र अत्यंत सुख देणारे असतात. तसेच परमेश्वर व विद्युतही सर्व प्रकारे आनंद देतात; परंतु या दोन्हींना जाणणारा विद्वान माणूस दुर्लभ आहे. ॥ ३ ॥