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सोमो॒ न वे॒धा ऋ॒तप्र॑जातः प॒शुर्न शिश्वा॑ वि॒भुर्दू॒रेभाः॑ ॥

English Transliteration

somo na vedhā ṛtaprajātaḥ paśur na śiśvā vibhur dūrebhāḥ ||

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Pad Path

सोमः॑। न। वे॒धाः। ऋ॒तऽप्र॑जातः। प॒शुः। न। शिश्वा॑। वि॒ऽभुः। दू॒रेऽभाः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:65» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:10 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह सभेश कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो (अप्सु) जलों में (हंसः) पक्षी के (न) समान (सीदन्) जाता-आता डूबता-उछलता हुआ (विशाम्) प्रजाओं को (उषर्भुत्) प्रातःकाल में बोध कराने वा (क्रत्वा) अपनी बुद्धि वा कर्म्म से (चेतिष्ठः) अत्यन्त ज्ञान करानेवाले (सोमः) ओषधिसमूह के (न) समान (ऋतप्रजातः) कारण से उत्पन्न होकर वायु जल में प्रसिद्ध (वेधाः) पुष्ट करनेवाले (शिशुना) बछड़ा आदि से (पशुः) गौ आदि के (न) समान (विभुः) व्यापक हुआ (दूरेभाः) दूरदेश में दीप्तियुक्त बिजुली आदि अग्नि के समान (श्वसिति) प्राण, अपान आदि को करता है, उसको शिल्पादि कार्यों में संप्रयुक्त करो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे बिजुली के विना किसी मनुष्य के व्यवहार की सिद्धि नहीं हो सकती। इस अग्निविद्या से परीक्षा करके कार्यों में संयुक्त किया हुआ अग्नि बहुत सुखों को सिद्ध करता है ॥ ५ ॥ इस सूक्त में ईश्वर, अग्निरूप बिजुली के वर्णन से इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं योऽप्सु हंसो नेव सीदन् विशामुषर्भुत् सन् क्रत्वा चेतिष्ठः सोमो नेवर्त्तप्रजातः शिशुना पशुर्नेव विभुः सन् दूरेभा विद्युदाद्यग्निरिव वेधाः श्वसिति तं कार्य्येषु विद्यया संप्रोजयत ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (श्वसिति) योऽग्निना प्राणाऽपानचेष्टां करोति (अप्सु) जलेषु (हंसः) पक्षिविशेषः (सीदन्) गच्छन्नागच्छन्निमज्जन्नुन्मज्जन् वा (क्रत्वा) क्रतुना प्रज्ञया स्वकीयेन कर्मणा वा (चेतिष्ठः) अतिशयेन चेतयिता (विशाम्) प्रजानाम् (उषर्भुत्) उषसि सर्वान्बोधयति सः। अत्रोषरुपपदाद् बुधधातोः क्विप्। बशोभषिति भत्वं च। (सोमः) ओषधिसमूहः (न) इव (वेधाः) पोषकः (ऋतप्रजातः) कारणादुत्पद्य ऋते वायावुदके प्रसिद्धः (पशुः) गवादिः (न) इव (शिश्वा) शिशुना वत्सादिना (विभुः) व्यापकः (दूरेभाः) दूरदेशे भा दीप्तयो यस्य सः ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा विद्युताग्निना विना कस्यचित्प्राणिनो व्यवहारसिद्धिर्भवितुं न शक्यास्ति। तस्मादयं विद्यया सम्परीक्ष्य कार्य्येषु संयोजितः बहूनि सुखानि साध्नोतीति ॥ ५ ॥ अत्रेश्वरविद्युदग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोद्धव्यम् ॥