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स॒नाद्दिवं॒ परि॒ भूमा॒ विरू॑पे पुन॒र्भुवा॑ युव॒ती स्वेभि॒रेवैः॑। कृ॒ष्णेभि॑र॒क्तोषा रुश॑द्भि॒र्वपु॑र्भि॒रा च॑रतो अ॒न्यान्या॑ ॥

English Transliteration

sanād divam pari bhūmā virūpe punarbhuvā yuvatī svebhir evaiḥ | kṛṣṇebhir aktoṣā ruśadbhir vapurbhir ā carato anyānyā ||

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Pad Path

स॒नात्। दिव॑म्। परि॑। भूम॑। विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे। पु॒नः॒ऽभुवा॑। यु॒व॒ती इति॑। स्वेभिः॑। एवैः॑। कृ॒ष्णेभिः॑। अ॒क्ता। उ॒षाः। रुश॑त्ऽभिः। वपुः॑ऽभिः। आ। च॒र॒तः॒। अ॒न्याऽअ॑न्या ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:62» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब रात्रि और दिन के दृष्टान्त से स्त्री और पुरुष किस-किस प्रकार वर्त्तमान करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे स्त्री-पुरुषो ! तुम जैसे (सनात्) सनातन कारण से (दिवम्) सूर्य्य प्रकाश और (भूमा) भूमि को प्राप्त होकर (पुनर्भुवा) वार-वार पर्य्याय से उत्पन्न होके (युवती) युवावस्था को प्राप्त हुए स्त्री-पुरुष के समान (विरूपे) विविध रूप से युक्त (अक्ता) रात्रि (उषाः) दिन (स्वेभिः) क्षण आदि अवयव (रुशद्भिः) प्राप्ति के हेतु रूपादि गुणों के साथ (वपुर्भिः) अपनी आकृति आदि शरीर वा (कृष्णेभिः) परस्पर आकर्षणादि को (एवैः) प्राप्त करनेवाले गुणों के साथ (अन्यान्या) भिन्न-भिन्न परस्पर मिले हुए (पर्य्याचरतः) जाते-आते हैं, वैसे स्वयंवर अर्थात् परस्पर की प्रसन्नता से विवाह करके एक-दूसरे के साथ प्रीतियुक्त होके सदा आनन्द में वर्त्तें ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि जैसे चक्र के समान सर्वदा वर्त्तमान रात्रि-दिन परस्पर संयुक्त वर्त्तते हैं, वैसे विवाहित स्त्री-पुरुष अत्यन्त प्रेम के साथ वर्त्ता करें ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ रात्रिदिवसदृष्टान्तेन स्त्रीपुरुषौ कथं वर्त्तेयातामित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे स्त्रीपुरुषौ ! युवां यथा सनाद्दिवं भूमा प्राप्य पुनर्भुवा युवती इव विरूपे अक्तोषाः स्वेभीरुशद्भिर्वपुभिः कृष्णेभिरेवैः सहान्यान्या पर्य्याचरतस्तथा स्वयंवरविधानेन विवाहं कृत्वा परस्परौ प्रीतिमन्तौ भूत्वा सततमानन्देतम् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (सनात्) सनातनात्कारणात् (दिवम्) सूर्यप्रकाशं प्राप्य (परि) सर्वतः (भूमा) भूमिम्। अत्र सुपां सुलुक् इति डादेशः। (विरूपे) विविधं रूपं ययोरह्नो रात्रेश्च ते (पुनर्भवा) ये पुनः पुनः पर्य्यायेण भवतस्ते। अत्र सुपां सुलुक् इत्याकारादेशः। (युवती) युवावस्थास्थे स्त्रियाविव (स्वेभिः) दक्षिणादिभिरवयवैः (एवैः) प्रापकैः इण्शीभ्यां वन्। (उणा०१.१५४) अनेनात्रेण्धातोर्वन् प्रत्ययः। (कृष्णेभिः) परस्पराकर्षणैर्विलेखनैः (अक्ता) अनक्त्यञ्जनवत्पदार्थानाच्छादयति सा रात्रिः (उषाः) दिनं च। (रुशद्भिः) प्रापकै रूपादिगुणैः (वपुर्भिः) स्वाकृत्यादिभिः शरीरैः (आ) समन्तात् (चरतः) गच्छत आगच्छतश्च (अन्यान्या) भिन्ना भिन्ना पृथक् पृथक् संयुक्ते च। अत्र वीप्सायां द्विर्वचनम् ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा सर्वदा चक्रवत्परिवर्त्तमाने रात्रिदिने परस्परं संयुक्ते वर्त्तेते तथा विवाहितो स्त्रीपुरुषौ संप्रीत्या सर्वदा वर्त्तेयाताम् ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणावे की, जसे चक्राप्रमाणे रात्र व दिवस परस्पर सदैव संयुक्त होऊन राहतात तसे विवाहित स्त्री-पुरुषांनी अत्यंत प्रेमाने राहावे. ॥ ८ ॥