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गृ॒णा॒नो अङ्गि॑रोभिर्दस्म॒ वि व॑रु॒षसा॒ सूर्ये॑ण॒ गोभि॒रन्धः॑। वि भूम्या॑ अप्रथय इन्द्र॒ सानु॑ दि॒वो रज॒ उप॑रमस्तभायः ॥

English Transliteration

gṛṇāno aṅgirobhir dasma vi var uṣasā sūryeṇa gobhir andhaḥ | vi bhūmyā aprathaya indra sānu divo raja uparam astabhāyaḥ ||

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Pad Path

गृ॒णा॒नः। अङ्गि॑रःऽभिः। द॒स्म॒। वि। वः॒। उ॒षसा॑। सूर्ये॑ण। गोभिः॑। अन्धः॑। वि। भूम्याः॑। अ॒प्र॒थ॒यः॒। इ॒न्द्र॒। सानु॑। दि॒वः। रजः॑। उप॑रम्। अ॒स्त॒भा॒यः॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:62» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) शत्रुओं के (दस्म) नाश करनेवाले सभाध्यक्ष ! (गृणानः) उपदेश करते हुए आप जैसे बिजुली (अङ्गिरोभिः) प्राण (उषसा) प्रातःकाल के (सूर्येण) सूर्य के प्रकाश तथा (गोभिः) किरणों से (अन्धः) अन्न को प्रकट करती है, वैसे धर्मराज्य और सेना को (विवः) प्रकट करो वैसे बिजुली को (व्यप्रथयः) विविधप्रकार से विस्तृत कीजिये। जैसे सूर्य (भूम्याः) पृथिवी में श्रेष्ठ (दिवः) प्रकाश के (सानु) ऊपरले भाग (रजः) सब लोकों और (उपरम्) मेघ को (अस्तभायः) संयुक्त करता है, वैसे धर्मयुक्त राज्य की सेना को विस्तारयुक्त कीजिये और शत्रुओं को बन्धन करते हुए आप हम सब लोगों से स्तुति करने के योग्य हो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को प्रातःकाल सूर्य के किरण और प्राणों के समान उक्त गुणों का प्रकाश करके दुष्टों का निवारण करना चाहिये। जैसे सूर्य प्रकाश को फैला और मेघ को उत्पन्न कर वर्षाता है, वैसे ही सभाध्यक्ष आदि मनुष्यों को प्रजा में उत्तम विद्या उत्पन्न करके सुखों की वर्षा करनी चाहिये ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! दस्म सभाद्यध्यक्ष ! गृणानस्त्वमङ्गिरोभिरुषसा सूर्येण गोभिरन्धो विवो वृणोति तथा विद्या व्यप्रथयो यथा भूम्या दिवः प्रकाशस्य सानु रजः सर्वं लोकमुपरं मेघं स्तभ्नाति तथा धर्मराज्यसेना विवः शत्रून् अस्तभायः स्तभान स भवानस्माभिः स्तुत्योऽस्ति ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (गृणानः) शब्दं कुर्वाणः। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम् । (अङ्गिरोभिः) प्राणैर्बलैः (दस्म) उपक्षेतः (वि) विशेषार्थे (वः) वृणोषि (उषसा) दिनप्रमुखेन (सूर्येण) सूर्यप्रकाशेन (गोभिः) किरणैः (अन्धः) अन्नम् (वि) विविधार्थे (भूम्याः) भूमिषु साधवः (अप्रथयः) प्रथय (इन्द्र) विदारक (सानु) शिखरम् (दिवः) प्रकाशस्य (रजः) लोकम् (उपरम्) मेघम् (अस्तभायः) स्तभान। अत्र लङर्थे लङ् ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। पुरुषैरुषोवत् सूर्यवत्किरणवत् प्राणवच्च सद्गुणान् प्रकाश्य दुष्टनिवारणं कार्यम्। यथा सूर्यः स्वप्रकाशं विस्तार्य मेघमुत्पाद्य वर्षयति, तथैव प्रजासु सद्विद्यामुत्पाद्य सुखवृष्टिः कार्येति ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांचे प्रातःकाळचे सूर्यकिरण व प्राण याप्रमाणे वरील गुणांचा प्रकाश करून दुष्टांचे निवारण केले पाहिजे. जसा सूर्य प्रकाश प्रसृत करून मेघ उत्पन्न करतो व वृष्टी करवितो. तसेच सभाध्यक्ष इत्यादी माणसांनी प्रजेला उत्तम विद्या शिकवून सुखाची वृष्टी करावी. ॥ ५ ॥