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स॒नात्सनी॑ळा अ॒वनी॑रवा॒ता व्र॒ता र॑क्षन्ते अ॒मृताः॒ सहो॑भिः। पु॒रू स॒हस्रा॒ जन॑यो॒ न पत्नी॑र्दुव॒स्यन्ति॒ स्वसा॑रो॒ अह्र॑याणम् ॥

English Transliteration

sanāt sanīḻā avanīr avātā vratā rakṣante amṛtāḥ sahobhiḥ | purū sahasrā janayo na patnīr duvasyanti svasāro ahrayāṇam ||

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Pad Path

स॒नात्। सऽनी॑ळाः। अ॒वनीः॑। अ॒वा॒ताः। व्र॒ता। र॒क्ष॒न्ते॒। अ॒मृताः॑। सहः॑ऽभिः। पु॒रु। स॒हस्रा॑। जन॑यः। न। पत्नीः॑। दु॒व॒स्यन्ति॑। स्वसा॑रः। अह्र॑याणम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:62» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - जैसे (अवाताः) हिंसारहित (अवनीः) भूमि सबकी रक्षा करती है (पुरुसहस्रा) बहुत हजारह (जनयः) उत्पन्न करनेहारे पति (पत्नीः) (न) जैसे अपनी स्त्रियों की रक्षा करते हैं, वैसे (सनीडाः) समीप में वर्त्तमान (अमृताः) नाशरहित विद्वान् लोग (सहोभिः) विद्या योग धर्मवालों से (सनात्) सनातन (व्रता) सत्य धर्म के आचरणों की (रक्षन्ते) रक्षा करते हैं, और जैसे (स्वसारः) बहिनें (अह्रयाणम्) लज्जा को अप्राप्त अपने भाई की (दुवस्यन्ति) सेवा करती हैं, वैसे विद्या और धर्म ही को सेवते हैं, वे मुक्ति को प्राप्त होते हैं ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे पति लोग अपनी स्त्रियों, बहिनों और भाइयों तथा विद्यार्थी लोग आचार्य्यों की सेवा से सुख और विद्याओं को प्राप्त होते हैं, वैसे धर्मात्मा विद्वान् स्त्री-पुरुष लोग घर में बसते हुए मुक्ति को प्राप्त होते हैं ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

अवाता अवनीरिव पुरु सहस्रा जनयः पत्नीर्न ये सनीडा अमृताः सहोभिः सनाद् व्रता स्वसारोऽह्रयाणं बन्धुं दुवस्यन्तीव विद्याधर्मौ सेवन्ते ते मुक्तिमाप्नुवन्ति ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (सनात्) सनातनात्कारणात् (सनीडाः) समीपे वर्त्तमानाः (अवनीः) पृथिवीः (अवाताः) वायुकम्पादिरहिताः (व्रता) व्रतानि सत्याचरणानि। अत्र शेश्छन्दसि० इति शेर्लोपः। (रक्षन्ते) पालयन्ति। व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (अमृताः) स्वरूपेण नित्याः (सहोभिः) बलैः (पुरु) बहूनि (सहस्रा) सहस्राणि (जनयः) ये जनयन्ति ते पतयः (नः) इव (पत्नीः) भार्य्याः (दुवस्यन्ति) परिचरन्ति (स्वसारः) भगिन्यः (अह्रयाणम्) विगतलज्जं प्रकाशितम्। अत्र नञ्पूर्वाद्ध्रीधातोर्बाहुलकादौणादिक आनच् प्रत्ययः ॥ १० ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा पतयः स्वस्त्री-भगिनी-भ्रातॄन् विद्यार्थिन आचार्य्यांश्च सेवित्वा सुखानि विद्याश्च प्राप्नुवन्ति तथा धर्मारूढा धार्मिका विद्वांसः स्त्रीपुरुषा गृहे वसन्तोऽपि मुक्तिमाप्नुवन्ति ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा पती आपल्या पत्नीची, भगिनी आपल्या बंधूंची व विद्यार्थी आचार्यांची सेवा करतात व विद्या आणि सुख प्राप्त करतात. तसे धर्मात्मा विद्वान स्त्री-पुरुषांना घरात राहूनही मुक्ती प्राप्त होते. ॥ १० ॥