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अ॒स्मा इदु॒ ग्नाश्चि॑द्दे॒वप॑त्नी॒रिन्द्रा॑या॒र्कम॑हि॒हत्य॑ ऊवुः। परि॒ द्यावा॑पृथि॒वी ज॑भ्र उ॒र्वी नास्य॒ ते म॑हि॒मानं॒ परि॑ ष्टः ॥

English Transliteration

asmā id u gnāś cid devapatnīr indrāyārkam ahihatya ūvuḥ | pari dyāvāpṛthivī jabhra urvī nāsya te mahimānam pari ṣṭaḥ ||

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Pad Path

अ॒स्मै। इत्। ऊँ॒ इति॑। ग्नाः। चि॒त्। दे॒वऽप॑त्नीः। इन्द्रा॑य। अ॒र्कम्। अ॒हि॒ऽहत्ये॑। ऊ॒वु॒रित्यू॑वुः। परि॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। ज॑भ्रे॒। उ॒र्वी इति॑। न। अ॒स्य॒। ते इति॑। म॒हि॒मान॑म्। परि॑। स्त॒ इति॑ स्तः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:61» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:28» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे सभापति ! जैसे यह सूर्य्य (द्यावापृथिवी) प्रकाश और भूमि को (जभ्रे) धारण करता वा जिसके वश में (उर्वी) बहुधा रूपप्रकाशयुक्त पृथिवी है (अस्य) जिस इस सभाध्यक्ष के (अहिहत्ये) मेघों के हनन व्यवहार में (चित्) प्रकाश भूमि की (महिमानम्) महिमा के (न) (परि स्तः) सब प्रकार छेदन को समर्थ नहीं हो सकते, वैसे उस (अस्मै) इस (इन्द्राय) ऐश्वर्य प्राप्त करनेवाले सभाध्यक्ष के लिये (इदु) ही (देवपत्नीः) विद्वानों से पालनीय पतिव्रता स्त्रियों के सदृश (ग्नाः) वेदवाणी (अर्कम्) दिव्यगुणुसम्पन्न अर्चनीय वीर पुरुष को (पर्यूवुः) सब प्रकार तन्तुओं के समान विस्तृत करती हैं, वही राज्य करने के योग्य होता है ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य के प्रताप और महत्त्व के आगे पृथिवी आदि लोकों की गणना स्वल्प है, वैसे ही पूर्ण विद्यावाले पुरुष के महिमा के आगे मूर्ख की गणना तुच्छ है ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे सभेश ! यथाऽयं द्यावापृथिवी जभ्रेऽस्य वशे उर्वी वर्त्तते यस्यास्याहिहत्ये द्यावापृथिवी चित् भूमिप्रकाशावपि महिमानं न परि स्तः परिछेत्तुं समर्थेन भवतस्तथा यस्मा अस्मा इन्द्रायेदु देवपत्नीर्ग्ना अर्कं पर्य्यूवुः परितः सर्वतो विस्तारयन्ति स राज्यं कर्तुं योग्यः स्यात् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (अस्मै) सभाध्यक्षाय (इदु) पादपूरणे (ग्नाः) वाणीः। ग्नेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (चित्) अपि (देवपत्नीः) देवैर्विद्वद्भिः पालनीयाः (इन्द्राय) परमैश्वर्यप्रापकाय (अर्कम्) दिव्यगुणसम्पन्नमर्चनीयं वीरम् (अहिहत्ये) अहीनां मेघानां हत्या यस्मिंस्तस्मिन् (ऊवुः) तन्तुवद् विस्तारयेयुः (परि) सर्वतः (द्यावापृथिवी) भूमिप्रकाशौ (जभ्रे) धरति (उर्वी) बहुरूपे द्यावापृथिव्यौ। ऊर्वीति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (न) निषेधे (अस्य) सूर्यस्य (ते) (महिमानम्) स्तुत्यस्य पूज्यस्य व्यवहारस्य भावम् (परि) अभितः (स्तः) भवतः ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यस्य प्रतापमहत्त्वस्याग्रे पृथिव्यादीनां स्वल्पत्वं विद्यते, तथैव पूर्णविद्यावतः पुरुषस्य महिम्नोऽग्रे मूर्खस्य गणना तुच्छाऽस्तीति ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्याचा प्रभाव (प्रताप) व महत्त्व यापुढे पृथ्वी इत्यादीची गणना क्षुल्लक आहे. तसेच पूर्ण विद्यायुक्त पुरुषाच्या महिमेपुढे मूर्खाची गणना तुच्छ आहे. ॥ ८ ॥