उ॒शिक्पा॑व॒को वसु॒र्मानु॑षेषु॒ वरे॑ण्यो॒ होता॑धायि वि॒क्षु। दमू॑ना गृ॒हप॑ति॒र्दम॒ आँ अ॒ग्निर्भु॑वद्रयि॒पती॑ रयी॒णाम् ॥
uśik pāvako vasur mānuṣeṣu vareṇyo hotādhāyi vikṣu | damūnā gṛhapatir dama ām̐ agnir bhuvad rayipatī rayīṇām ||
उ॒शिक्। पा॒व॒कः। वसुः॑। मानु॑षेषु। वरे॑ण्यः। होता॑। अ॒धा॒यि॒। वि॒क्षु। दमू॑ना। गृ॒हऽप॑तिः। दमे॑। आ। अ॒ग्निः। भु॒व॒त्। र॒यि॒ऽपतिः॑। र॒यी॒णाम् ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
मनुष्यैर्य उशिक् पावको वसुर्वरेण्यो दमूना गृहपती रयिपतिरग्निरिव मानुषेषु विक्षु दमे च रयीणां होता दाता भुवद्भवेत्, स प्रजापालनक्षम अधायि ॥ ४ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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