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के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्या अपे॒शसे॑। समु॒षद्भि॑रजायथाः॥

English Transliteration

ketuṁ kṛṇvann aketave peśo maryā apeśase | sam uṣadbhir ajāyathāḥ ||

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Pad Path

के॒तुम्। कृ॒ण्वन्। अ॒के॒तवे॑। पेशः॑। म॒र्याः॒। अ॒पे॒शसे॑। सम्। उ॒षत्ऽभिः॑। अ॒जा॒य॒थाः॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:6» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

जिसने संसार के सब पदार्थ उत्पन्न किये हैं, वह कैसा है, यह बात अगले मन्त्र में प्रकाशित की है-

Word-Meaning: - (मर्य्याः) हे मनुष्य लोगो ! जो परमात्मा (अकेतवे) अज्ञानरूपी अन्धकार के विनाश के लिये (केतुम्) उत्तम ज्ञान, और (अपेशसे) निर्धनता दारिद्र्य तथा कुरूपता विनाश के लिये (पेशः) सुवर्ण आदि धन और श्रेष्ठ रूप को (कृण्वन्) उत्पन्न करता है, उसको तथा सब विद्याओं को (समुषद्भिः) जो ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल वर्त्तनेवाले हैं, उनसे मिल कर जानो। तथा हे जानने की इच्छा करनेवाले मनुष्य ! तू भी उस परमेश्वर के समागम से (अजायथाः) इस विद्या को यथावत् प्राप्त हो॥३॥
Connotation: - मनुष्यों को प्रति रात्रि के चौथे प्रहर में आलस्य छोड़कर फुरती से उठ कर अज्ञान और दरिद्रता के विनाश के लिये प्रयत्नवाले होकर तथा परमेश्वर के ज्ञान और संसारी पदार्थों से उपकार लेने के लिये उत्तम उपाय सदा करना चाहिये। यद्यपि मर्य्याः इस पद से किसी का नाम नहीं मालूम होता, तो भी यह निश्चय करके जाना जाता है कि इस मन्त्र में इन्द्र का ही ग्रहण है कि-हे इन्द्र तू वहाँ प्रकाश करनेवाला है कि जहाँ पहिले प्रकाश नहीं था। यह मोक्षमूलरजी का अर्थ असङ्गत है, क्योंकि मर्य्याः यह शब्द मनुष्य के नामों में निघण्टु में पढ़ा है, तथा अजायथाः यह प्रयोग पुरुषव्यत्यय से प्रथम पुरुष के स्थान में मध्यम पुरुष का प्रयोग किया है॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

येनेमे पदार्था उत्पादिताः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे मर्य्याः ! यो जगदीश्वरोऽकेतवे केतुमपेशसे पेशः कृणवन्सन् वर्त्तते तं सर्वा विद्याश्च समुषद्भिः सह समागमं कृत्वा यूयं यथावद्विजानीत। तथा हे जिज्ञासो मनुष्य ! त्वमपि तत्समागमेनाऽजायथाः, एतद्विद्याप्राप्त्या प्रसिद्धो भव॥३॥

Word-Meaning: - (केतुम्) प्रज्ञानम्। केतुरिति प्रज्ञानामसु पठितम्। (निघं०३.९) (कृण्वन्) कुर्वन्सन्। इदं कृवि हिंसाकरणयोश्चेत्यस्य रूपम्। (अकेतवे) अज्ञानान्धकारविनाशाय (पेशः) हिरण्यादिधनं श्रेष्ठं रूपं वा। पेश इति हिरण्यनामसु पठितम्। (निघं०१.२) रूपनामसु च। (निघं०३.७) (मर्य्याः) मरणधर्मशीला मनुष्यास्तत्सम्बोधने। मर्य्या इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) (अपेशसे) निर्धनतादारिद्र्यादिदोषविनाशाय (सम्) सम्यगर्थे (उषद्भिः) ईश्वरादिपदार्थविद्याः कामयमानैर्विद्वद्भिः सह समागमं कृत्वा (अजायथाः) एतद्विद्याप्राप्त्या प्रकटो भव। अत्र लोडर्थे लङ्॥३॥
Connotation: - मनुष्यै रात्रेश्चतुर्थे प्रहर आलस्यं त्यक्त्वोत्थायाज्ञानदारिद्र्यविनाशाय नित्यं प्रयत्नवन्तो भूत्वा परमेश्वरस्य ज्ञानं पदार्थेभ्य उपकारग्रहणं च कार्य्यमिति। ‘यद्यपि मर्य्या इति विशेषतयाऽत्र कस्यापि नाम न दृश्यते, तदप्यत्रेन्द्रस्यैव ग्रहणमस्तीति निश्चीयते। हे इन्द्र ! त्वं प्रकाशं जनयसि यत्र पूर्वं प्रकाशो नाभूत्। ’ इति मोक्षमूलरकृतोऽर्थोऽसङ्गतोऽस्ति। कुतो, मर्य्या इति मनुष्यनामसु पठितत्वात् (निघं०२.३)। अजायथा इति लोडर्थे लङ्विधानेन मनुष्यकर्त्तृकत्वेन पुरुषव्यत्ययेन प्रथमार्थे मध्यमविधानादिति॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी प्रत्येक रात्री चौथ्या प्रहरी आळस सोडून स्फूर्तीने उठावे. अज्ञान व दारिद्र्याचा नाश करण्याचा प्रयत्न करावा. परमेश्वराचे ज्ञान व जगातील पदार्थांचा उपयोग करून घेण्यासाठी सदैव उत्तम उपाय योजावेत. ॥ ३ ॥
Footnote: जरी ‘मर्य्या’ या पदाने एखाद्याचे नाव माहीत होत नाही तरीही हा निश्चय करून जाणलेले आहे की, या मंत्रात इंद्राचे ग्रहण केलेले आहे - ‘हे इंद्रा! तू तेथे प्रकाश करणारा आहेस जेथे पूर्वी प्रकाश नव्हता’, हा मोक्षमूलरजींचा अर्थ अनुचित आहे कारण ‘मर्य्याः’ हा शब्द माणसांच्या नावाने निघंटुमध्ये आहे. व ‘अजायथाः’ हा प्रयोग पुरुषव्यत्ययाने प्रथम पुरुषाच्या स्थानी मध्यम पुरुषाचा प्रयोग केलेला आहे. ॥ ३ ॥