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वि वात॑जूतो अत॒सेषु॑ तिष्ठते॒ वृथा॑ जु॒हूभिः॒ सृण्या॑ तुवि॒ष्वणिः॑। तृ॒षु यद॑ग्ने व॒निनो॑ वृषा॒यसे॑ कृ॒ष्णं त॒ एम॒ रुश॑दूर्मे अजर ॥

English Transliteration

vi vātajūto ataseṣu tiṣṭhate vṛthā juhūbhiḥ sṛṇyā tuviṣvaṇiḥ | tṛṣu yad agne vanino vṛṣāyase kṛṣṇaṁ ta ema ruśadūrme ajara ||

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Pad Path

वि। वात॑ऽजूतः। अ॒त॒सेषु॑। ति॒ष्ठ॒ते॒। वृथा॑। जु॒हूभिः॑। सृण्या॑। तु॒वि॒ऽस्वणिः॑। तृ॒षु। यत्। अ॒ग्ने॒। व॒निनः॑। वृ॒ष॒ऽयसे॑। कृ॒ष्णम्। ते॒। एम॑। रुश॑त्ऽऊर्मे। अ॒ज॒र॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:58» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:23» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (रुशदूर्मे) अपने स्वभाव से गतिशील (अजर) वृद्धावस्था से रहित (अग्ने) बिजुली के तुल्य वर्त्तमान जीव ! जो तू (अतसेषु) आकाशादि व्यापक पदार्थों में (वितिष्ठते) ठहरता (यत्) जो (वातजूतः) वायु का प्रेरक और वायु के समान वेगवाला (तुविष्वणिः) बहुत पदार्थों का सेवक (जुहूभिः) ग्रहण करने के साधनरूप क्रियाओं और (सृण्या) धारण तथा हननरूप कर्म्म से सह वर्त्तमान (वनिनः) विद्युत् युक्त प्राणों को प्राप्त होके तू (तृषु) शीघ्र (वृषायसे) बलवान् होता है, जिस (ते) तेरे (कृष्णम्) कर्षणरूप गुण को हम लोग (एम) प्राप्त होते हैं, सो तू (वृथा) अभिमान को छोड़ के अपने स्वरूप को जान ॥ ४ ॥
Connotation: - सब मनुष्यों को ईश्वर उपदेश करता है कि जैसा मैंने जीव के स्वभाव का उपदेश किया है, वही तुम्हारा स्वरूप है, यह निश्चित जानो ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे रुशदूर्मेऽजराग्ने जीव ! यो भवानतसेषु वितिष्ठते यद्यो वातजूतो जुहूभिः सृण्या च सह वनिनः प्राप्य त्वं वृथाऽभिमानं परित्यज्य स्वात्मानं जानीहि ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (वि) विशेषार्थे (वातजूतः) वातेन वायुना जूतः प्राप्तवेगः (अतसेषु) व्याप्तव्येषु तृणकाष्ठभूमिजलादिषु (तिष्ठते) वर्त्तते (वृथा) व्यर्थे (जुहूभिः) जुह्वति याभिः क्रियाभिः (सृण्या) धारणेन हननेन वा। द्विविधा सृणिर्भवति भर्ता च हन्ता च। (निरु०१३.५) (तुविष्वणिः) यस्तुविषो बहून् पदार्थान् वनति सम्भजति सः (तृषु) शीघ्रम् (यत्) यः (अग्ने) विद्युद्वद्वर्त्तमान (वनिनः) प्रशस्ता रश्मयो वनानि वा येषां तेषु वा तान् (वृषायसे) वृष इवाचरसि (कृष्णम्) कर्षति विलिखति येन ज्योतिः समूहेन तम् (ते) तव (एम) विज्ञाय प्राप्नुयाम (रुशदूर्मे) रुशन्त्य ऊर्मयो ज्वाला यस्य तत्सम्बुद्धौ (अजर) स्वयं जरादिदोषरहित ॥ ४ ॥
Connotation: - सर्वान् मनुष्यान् प्रतीश्वरोऽभिवदति मया यदुपदिष्टं तदेव युष्मदात्मस्वरूपमस्तीति वेदितव्यम् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्व माणसांना ईश्वर उपदेश करतो की जसे मी जीवाच्या स्वभावाबाबत उपदेश केलेला आहे. तेच तुझे स्वरूप आहे हे निश्चित जाण. ॥ ४ ॥