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भूरि॑ त इन्द्र वी॒र्यं१॒॑ तव॑ स्मस्य॒स्य स्तो॒तुर्म॑घव॒न्काम॒मा पृ॑ण। अनु॑ ते॒ द्यौर्बृ॑ह॒ती वी॒र्यं॑ मम इ॒यं च॑ ते पृथि॒वी ने॑म॒ ओज॑से ॥

English Transliteration

bhūri ta indra vīryaṁ tava smasy asya stotur maghavan kāmam ā pṛṇa | anu te dyaur bṛhatī vīryam mama iyaṁ ca te pṛthivī nema ojase ||

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Pad Path

भूरि॑। ते॒। इ॒न्द्र॒। वी॒र्य॑म्। तव॑। स्म॒सि॒। अ॒स्य। स्तो॒तुः। म॒घऽव॒न्। काम॑म्। आ। पृ॒ण॒। अनु॑। ते॒। द्यौः। बृ॒ह॒ती। वी॒र्य॑म्। म॒मे॒। इ॒यम्। च॒। ते॒। पृ॒थि॒वी। ने॒मे॒। ओज॑से ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:57» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (मघवन्) उत्तम धनयुक्त (इन्द्र) सेनादि बलवाले सभाध्यक्ष ! जिस (ते) आप का जो (भूरि) बहुत (वीर्यम्) पराक्रम है, जिस के हम लोग (स्मसि) आश्रित और जिस (तव) आपकी (इयम्) यह (बृहती) बड़ी (द्यौः) विद्या, विनययुक्त न्यायप्रकाश और राज्य के वास्ते (पृथिवी) भूमि (ओजसे) बलयुक्त के लिये और भोगने के लिये (नेमे) नम्र के समान है, वह आप (अस्य) इस (स्तोतुः) स्तुतिकर्त्ता के (कामम्) कामना को (आपृण) परिपूर्ण करें ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि ईश्वर का आश्रय करके सब कामनाओं की सिद्धि वा पृथिवी के राज्य की प्राप्ति करके निरन्तर सुखी रहें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मघवन्निन्द्र ! यस्य ते तव यद्भूरि वीर्य्यमस्ति यद्वयं स्मसि यस्य तवेयं बृहती द्यौः पृथिवी चौजसे नेमे भोगाय प्रह्वीभूता नम्रेव भवति, स त्वमस्य स्तोतुः काममापृण ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (भूरि) बहु (ते) तव (इन्द्र) परमात्मन् (वीर्य्यम्) बलं पराक्रमो वा (तव) (स्मसि) स्मः (अस्य) वक्ष्यमाणस्य (स्तोतुः) गुणप्रकाशकस्य (मघवन्) परमपूज्य (कामम्) इच्छाम् (आ) समन्तात् (पृण) प्रपूर्द्धि (अनु) पश्चात् (ते) तव (द्यौः) सूर्यादिः (बृहती) महती (वीर्य्यम्) पराक्रमम् (ममे) मिमीते (इयम्) वक्ष्यमाणा (च) समुच्चये (ते) तव (पृथिवी) भूमिः (नेमे) प्रह्वीभूता भवति (ओजसे) बलयुक्ताय ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यैरीश्वरस्यानन्तं वीर्य्यमाश्रित्य कामसिद्धिं पृथिवीराज्यं सम्पाद्य सततं सुखयितव्यम् ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी ईश्वराचा आश्रय घेऊन सर्व कामनांची सिद्धी करावी व पृथ्वीच्या राज्याची प्राप्ती करून निरंतर सुखी व्हावे. ॥ ५ ॥