प्र मंहि॑ष्ठाय बृह॒ते बृ॒हद्र॑ये स॒त्यशु॑ष्माय त॒वसे॑ म॒तिं भ॑रे। अ॒पामि॑व प्रव॒णे यस्य॑ दु॒र्धरं॒ राधो॑ वि॒श्वायु॒ शव॑से॒ अपा॑वृतम् ॥
pra maṁhiṣṭhāya bṛhate bṛhadraye satyaśuṣmāya tavase matim bhare | apām iva pravaṇe yasya durdharaṁ rādho viśvāyu śavase apāvṛtam ||
प्र। मंहि॑ष्ठाय। बृ॒ह॒ते। बृ॒हत्ऽर॑ये। स॒त्यऽशु॑ष्माय। त॒वसे॑। म॒तिम्। भ॒रे॒। अ॒पाम्ऽइ॑व। प्र॒व॒णे। यस्य॑। दुः॒ऽधर॑म्। राधः॑। वि॒श्वऽआ॑यु। शव॑से। अप॑ऽवृतम् ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः सभाध्यक्षो कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते ॥
यथाऽहं यस्य सभाद्यध्यक्षस्य शवसे प्रवणेऽपामिवापावृतं विश्वायु दुर्धरं राधोऽस्ति, तस्मै सत्यशुष्माय तवसे बृहद्रये बृहते मंहिष्ठाय मतिं प्रभरे तथा यूयमपि संधारयत ॥ १ ॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नी व सभाध्यक्ष इत्यादींच्या गुणांच्या वर्णनाने या सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥