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तं गू॒र्तयो॑ नेम॒न्निषः॒ परी॑णसः समु॒द्रं न सं॒चर॑णे सनि॒ष्यवः॑। पतिं॒ दक्ष॑स्य वि॒दथ॑स्य॒ नू सहो॑ गि॒रिं न वे॒ना अधि॑ रोह॒ तेज॑सा ॥

English Transliteration

taṁ gūrtayo nemanniṣaḥ parīṇasaḥ samudraṁ na saṁcaraṇe saniṣyavaḥ | patiṁ dakṣasya vidathasya nū saho giriṁ na venā adhi roha tejasā ||

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Pad Path

तम्। गू॒र्तयः॑। ने॒म॒न्ऽइषः॑। परी॑णसः। स॒मु॒द्रम्। न। स॒म्ऽचर॑णे। स॒नि॒ष्यवः॑। पति॑म्। दक्ष॑स्य। वि॒दथ॑स्य। नु। सहः। गि॒रिम्। न। वे॒नाः। अधि॑। रो॒ह॒। तेज॑सा ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:56» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे कन्ये ! तू (संचरणे) अच्छे प्रकार समागम में (न) जैसे (सनिष्यवः) सम्यक् विविध सेवन करनेहारी नदियाँ (समुद्रम्) सागर को प्राप्त होती और (न) जैसे बादल (गिरिम्) मेघ को प्राप्त होते हैं, वैसे जो (परीणसः) बहुत (नेमन्निषः) प्राप्त होने योग्य इष्ट सुखदायक (गूर्त्तयः) उद्यमयुक्त बुद्धिमती ब्रह्मचारिणी और (वेनाः) बुद्धिमान् ब्रह्मचारी लोग समावर्त्तन के पश्चात् परस्पर प्रीति के साथ विवाह करें (दक्षस्य) हे कन्ये ! तू सब विद्याओं में अतिचतुर (विदथस्य) पूर्णविद्यायुक्त विद्वान् से विद्या को प्राप्त हुए (पतिम्) स्वामी को (अधिरोह) प्राप्त हो (तेजसा) अतीव तेज से (तम्) उसको प्राप्त हो के (सहः) बल को (नु) शीघ्र प्राप्त हो ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सब लड़के और लड़कियों को योग्य है कि यथोक्त ब्रह्मचर्य्य के सेवन से सम्पूर्ण विद्याओं को पढ़ के पूर्ण युवावस्था में अपने तुल्य, गुण कर्म और स्वभाववाले परस्पर परीक्षा करके अतीव प्रेम के साथ विवाह कर पुनः जो पूर्ण विद्यावाले हों तो लड़के लड़कियों को पढ़ाया करें, जो क्षत्रिय हों तो राजपालन और न्याय किया करें, जो वैश्य हों तो अपने वर्ण के कर्म और जो शूद्र हों तो अपने कर्म किया करें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे कन्ये ! त्वं संचरणे सनिष्यवः समुद्रं नद्यो न गिरिं न परीणसो नेमन्निषो गूर्त्तयो धीमत्यो ब्रह्मचारिण्यो वेना मेधाविनो ब्रह्मचारिणः समावर्त्तनात् पश्चात् परस्परं प्रीत्या विवाहं कुर्वन्तु, दक्षस्य विदथस्य विदुषः सकाशात् प्राप्तविद्यां पतिमधिरोह तं तेजसा प्राप्य सहो नु प्राप्नुहि ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (तम्) पूर्वोक्तम् (गूर्त्तयः) उद्यमयुक्ताः कन्याः (नेमन्निषः) नीयन्त इष्यन्ते च यास्ताः (परीणसः) बह्व्यः। परीणस इति बहुनामसु पठितम्। (निघं०३.१) (समुद्रम्) सागरम् (न) इव (संचरणे) सङ्गमने (सनिष्यवः) संविभागमिच्छवः (पतिम्) स्वामिनम् (दक्षस्य) चतुरस्य (विदथस्य) विज्ञानयुक्तस्य (नु) शीघ्रम् (सहः) बलम् (गिरिम्) मेघम् (न) इव (वेनाः) मेधाविनः। वेन इति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) (अधि) उपरिभावे (रोह) (तेजसा) प्रतापेन ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारौ। सर्वैर्बालकैः कन्याभिश्च यथाविधिसेवितेन ब्रह्मचर्य्येणाऽखिला विद्या अधीत्य पूर्णयुवावस्थायां तुल्यगुणकर्मस्वभावान् परीक्ष्यान्योन्यमतिप्रेमोद्भवानन्तरं विवाहं कृत्वा पुनर्यदि पूर्णविद्यास्तर्हि बालिका अध्यापयेयुः। क्षत्रियवैश्यशूद्रवर्णयोग्याश्चेत्तर्हि स्व-स्ववर्णोचितानि कर्माणि कुर्य्युः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सर्व मुला-मुलींनी ब्रह्मचर्याचे पालन करून सर्व विद्या ग्रहण करावी व पूर्ण युवावस्थेत परस्पर परीक्षा करून आपल्यासारख्या गुण कर्म स्वभाव असलेल्याशी अत्यंत प्रेमाने विवाह करावा. ज्यांनी पूर्ण विद्या प्राप्त केलेली असेल त्यांनी मुला-मुलींना शिकवावे. जे क्षत्रिय असतील त्यांनी राज्याचे पालन करावे व न्यायदान करावे. जे वैश्य असतील त्यांनी आपल्या वर्णाचे कर्म व जे शूद्र असतील तर त्यांनी आपले कर्म करावे. ॥ २ ॥