Go To Mantra

स हि श्र॑व॒स्युः सद॑नानि कृ॒त्रिमा॑ क्ष्म॒या वृ॑धा॒न ओज॑सा विना॒शय॑न्। ज्योतीं॑षि कृ॒ण्वन्न॑वृ॒काणि॒ यज्य॒वेऽव॑ सु॒क्रतुः॒ सर्त॒वा अ॒पः सृ॑जत् ॥

English Transliteration

sa hi śravasyuḥ sadanāni kṛtrimā kṣmayā vṛdhāna ojasā vināśayan | jyotīṁṣi kṛṇvann avṛkāṇi yajyave va sukratuḥ sartavā apaḥ sṛjat ||

Mantra Audio
Pad Path

सः। हि। श्र॒व॒स्युः। सद॑नानि। कृ॒त्रिमा॑। क्ष्म॒या। वृ॒धा॒नः। ओज॑सा। वि॒ऽना॒शय॑न्। ज्योतीं॑षि। कृ॒ण्वन्। अ॒वृ॒काणि॑। यज्य॑वे। अव॑। सु॒ऽक्रतुः॑। सर्त॒वै। अ॒पः। सृ॒ज॒त् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:55» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - जो (सुक्रतुः) श्रेष्ठ बुद्धि वा कर्मयुक्त (ओजसा) पराक्रम से (क्ष्मया) पृथिवी के साथ (वृधानः) बढ़ता हुआ और (श्रवस्युः) अपने आत्मा के वास्ते अन्न की इच्छा से सब शास्त्रों का श्रवण कराता हुआ (यज्यवे) राज्य के अनुष्ठान के वास्ते (सर्त्तवै) जाने-आने को (कृत्रिमाणि) किये हुए (अवृकाणि) चोरादि रहित (सदनानि) मार्ग और सुन्दर घरों को सुशोभित (कृण्वन्) करता हुआ (अपः) जलों को वर्षाने हारा (ज्योतींषि) चन्द्रादि नक्षत्रों को प्रकाशित करते हुए सूर्य्य के तुल्य (विनाशयन्) अविद्या का नाश करता हुआ राज्य (अवसृजत्) बनावे, वही सब मनुष्यों को माता, पिता, मित्र और रक्षक मानने योग्य है ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्य जो सूर्य्य के सदृश विद्या, धर्म और राजनीति का प्रचारकर्त्ता हो के सब मनुष्यों को उत्तम बोधयुक्त करता है, वह मनुष्यादि प्राणियों का कल्याणकारी है, ऐसा निश्चित जानें ॥ ६ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स किं कुर्यादित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यः सुक्रतुरोजसा क्ष्मया सह वृधानः श्रवस्युर्यज्यवे सर्तवै कृत्रिमाण्यवृकाणि सदनानि कृण्वन्नपो ज्योतींषि प्रकाशयन् सूर्य इव विनाशयन्निव सृजत् स हि सर्वैर्मनुष्यैर्माता पिता सुहृद्रक्षकश्च मन्तव्यः ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (सः) उक्तः (हि) किल (श्रवस्युः) आत्मनः श्रवोऽन्नमिच्छुः (सदनानि) स्थानान्युदकानि वा। सदनमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (कृत्रिमा) कृत्रिमाणि (क्ष्मया) पृथिव्या सह। क्ष्मेति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (वृधानः) वर्धमानः (ओजसा) विद्याबलेन (विनाशयन्) अविद्याऽदर्शनं प्रापयन् (ज्योतींषि) विद्यादिसद्गुणप्रकाशकानि तेजांसि (कृण्वन्) कुर्वन् (अवृकाणि) अविद्यमानचोराणि (यज्यवे) यज्ञाऽनुष्ठानाय (अव) विनिग्रहे (सुक्रतुः) शोभना प्रज्ञा कर्म वा यस्य सः (सर्त्तवै) सर्तुं ज्ञातुं गन्तुं वा (अपः) जलानि (सृजत्) सृजति ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। य सूर्यवद्विद्याधर्मराजनीतिप्रकाशकः सन् सर्वान् सुबोधान् करोति स सर्वैरखिलमनुष्यादिप्राणिनां कल्याणकार्य्यस्तीति वेद्यम् ॥ ६ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो सूर्याप्रमाणे (प्रकाशयुक्त), विद्या, धर्म व राजनीतीचा प्रचारकर्ता असून सर्वांना उत्तम बोध करवितो, तो सर्व माणसांचा कल्याणकर्ता असतो हे निश्चित जाणावे. ॥ ६ ॥