Go To Mantra

स घा॒ राजा॒ सत्प॑तिः शूशुव॒ज्जनो॑ रा॒तह॑व्यः॒ प्रति॒ यः शास॒मिन्व॑ति। उ॒क्था वा॒ यो अ॑भिगृ॒णाति॒ राध॑सा॒ दानु॑रस्मा॒ उप॑रा पिन्वते दि॒वः ॥

English Transliteration

sa ghā rājā satpatiḥ śūśuvaj jano rātahavyaḥ prati yaḥ śāsam invati | ukthā vā yo abhigṛṇāti rādhasā dānur asmā uparā pinvate divaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

सः। घ॒। राजा॑। सत्ऽप॑तिः। शू॒शु॒व॒त्। जनः॑। रा॒तऽह॑व्यः। प्रति॑। यः। शास॑म्। इन्व॑ति। उ॒क्था। वा॒। यः। अ॒भि॒ऽगृ॒णाति॑। राध॑सा। दानुः॑। अ॒स्मै॒। उप॑रा। पि॒न्व॒ते॒। दि॒वः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:54» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:7


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उस सभाध्यक्ष को क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (यः) जो (रातहव्यः) हव्य पदार्थों को देने (सत्पतिः) सत्पुरुषों का पालन करने (जनः) उत्तम गुण और कर्मों से सहित वर्त्तमान (राजा) न्यायविनयादि गुणों से प्रकाशमान सभाध्यक्ष (प्रतिशासम्) शास्त्र-शास्त्र के प्रति प्रजा को (इन्वति) न्याय में व्याप्त करता (वा) अथवा (शूशुवत्) राज्य करने को जानता है और जो (राधसा) न्याय करके प्राप्त हुए धन से (दानुः) दानशील हुआ (उक्था) कहने योग्य वेदस्तोत्र वा वचनों को (अभिगृणाति) सब मनुष्यों के लिये उपदेश करता है (अस्मै) इस सभाध्यक्ष के लिये (दिवः) (उपरा) जैसे सूर्य के प्रकाश से मेघ उत्पन्न होकर भूमि को (पिन्वते) सींचता है, वैसे सब सुखों को (पिन्वते) सेवन करे (सः) वही राज्य कर सकता है ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। कोई भी मनुष्य उत्तम विद्या, विनय, न्याय और वीरपुरुषों की सेना के ग्रहण वा अनुष्ठान के विना राज्य के लिये शिक्षा करने, शत्रुओं को जीतने और सब सुखों को प्राप्त होने को समर्थ नहीं हो सकता, इसलिये सभाध्यक्ष को अवश्य इन बातों का अनुष्ठान करना चाहिये ॥ ७ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तेन सभाध्यक्षेण किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यो रातहव्यः सत्पतिः सभाध्यक्षो जनो राजा प्रतिशासं प्रजा इन्वति न्यायं व्याप्नोति वा। यः शूशुवद् राज्यं कर्त्तुं जानाति राधसा दानुः सन्नुक्थाऽभिगृणाति सर्वेभ्यो मनुष्येभ्य उपदिशत्यस्मै दिव उपरा सूर्य्यादुत्पद्य मेघो भूमिं सिञ्चतीव सर्वसुखानि पिन्वते सेवते स घ राज्यं कर्तुं शक्नोति ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (सः) (घ) एव। अत्र ऋचि तुनुघ० इति दीर्घः। (राजा) न्यायविज्ञानादिभिः प्रकाशमानः (सत्पतिः) सतां पालयिता (शूशुवत्) यो ज्ञापयति वर्द्धयति वा। अयं ण्यन्तस्य श्विधातोर्लुङि प्रयोगोऽडभावश्च (जनः) उत्तमगुणकर्मभिर्वर्त्तमानः (रातहव्यः) रातानि दत्तानि हव्यानि येन सः (प्रति) वीप्सायाम् (यः) ईदृग्लक्षणः (शासम्) शास्ति येन तं न्यायम् (इन्वति) व्याप्नोति। इन्वतीति व्याप्तिकर्मसु पठितम्। (निघं०२.१८) (उक्था) वक्तुं योग्यानि वेदस्तोत्राणि वचनानि वा (वा) पक्षान्तरे (यः) सत्यवक्ता (अभिगृणाति) अभिगतान्युपदिशति (राधसा) न्यायप्राप्तेन धनेन (दानुः) दानशीलः (अस्मै) सभाध्यक्षाय (उपरा) मेघ इव। उपर इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१०) उपर उपलो मेघो भवति। उपरमन्तेऽस्मिन्नभ्राणि। उपरता आप इति वा। (निरु०२.२१) (पिन्वते) सेवते सिञ्चति वा। अत्र व्यत्ययेन आत्मनेपदम्। (दिवः) प्रकाशमानाद्धर्म्याचरणात् ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि कश्चित्सद्विद्याविनयन्यायवीरपुरुषसेनाग्रहणानुष्ठानेन विना राज्यं शासितुं शत्रून् जेतुं सर्वाणि सुखानि च प्राप्तुं शक्नोति तस्मादेतत्सभाध्यक्षेणावश्यमनुष्ठेयम् ॥ ७ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. कोणताही माणूस उत्तम विद्या, विनय, न्याय व वीरपुरुषांच्या सेनेचे ग्रहण, अनुष्टान याशिवाय राज्यासाठी शिक्षण घेणे, शत्रूंना जिंकणे व सुख प्राप्त करणे इत्यादींसाठी समर्थ बनू शकत नाही. त्यासाठी सभाध्यक्षाला या गोष्टींचे अनुष्ठान केलेच पाहिजे. ॥ ७ ॥