Go To Mantra

अ॒भि स्ववृ॑ष्टिं॒ मदे॑ अस्य॒ युध्य॑तो र॒घ्वीरि॑व प्रव॒णे स॑स्रुरू॒तयः॑। इन्द्रो॒ यद्व॒ज्री धृ॒षमा॑णो॒ अन्ध॑सा भि॒नद्व॒लस्य॑ परि॒धीँरि॑व त्रि॒तः ॥

English Transliteration

abhi svavṛṣṭim made asya yudhyato raghvīr iva pravaṇe sasrur ūtayaḥ | indro yad vajrī dhṛṣamāṇo andhasā bhinad valasya paridhīm̐r iva tritaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒भि। स्वऽवृ॑ष्टिम्। मदे॑। अ॒स्य॒। युध्य॑तः। र॒घ्वीःऽइ॑व। प्र॒व॒णे। स॒स्रुः॒। ऊ॒तयः॑। इन्द्रः॑। यत्। व॒ज्री। धृ॒षमा॑णः॑। अन्ध॑सा। भि॒नत्। व॒लस्य॑। प॒रि॒धीन्ऽइ॑व। त्रि॒तः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:52» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:12» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (यत्) जो सूर्य्य के समान (स्ववृष्टिम्) अपने शस्त्रों की वृष्टि करता हुआ (धृषमाणः) शत्रुओं को प्रगल्भता दिखाने हारा (वज्री) शत्रुओं को छेदन करनेवाले शस्त्रसमूह से युक्त (इन्द्रः) सभाध्यक्ष (मदे) हर्ष में (अस्य) इस (युध्यतः) युद्ध करते हुए (बलस्य) शत्रु के (त्रितः) ऊपर, मध्य और टेढ़ी तीन रेखाओं से (परिधींरिव) सब प्रकार ऊपर की गोल रेखा के समान बल को (अभि भिनत्) सब प्रकार से भेदन करता है, उसके (अन्धसा) अन्नादि वा जल से (रघ्वीरिव) जैसे जल से पूर्ण नदियाँ (प्रवणे) नीचे स्थान में जाती हैं, वैसे (ऊतयः) रक्षा आदि (सस्रुः) गमन करती हैं ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे जल नीचे स्थान को जाते हैं, वैसे सभाध्यक्ष नम्र होकर विनय को प्राप्त होवे ॥ ५ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यद्यः सूर्य इव शस्त्राणां स्ववृष्टिं कुर्वन् धृषमाणो वज्रीन्द्रः सभाद्यध्यक्षो मदेऽस्य युध्यतः शत्रोस्त्रितः परिधींरिव बलमभिभिनदभितो भिनत्ति तस्यान्धसा रघ्वीः प्रवण इवोतयः सस्रुः ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (अभि) आभिमुख्ये (स्ववृष्टिम्) स्वस्य शस्त्राणां वा वृष्टिर्यस्य तम् (मदे) हर्षे (अस्य) शत्रोर्वृत्रस्य वा (युध्यतः) युद्धं कुर्वतः (रघ्वीरिव) यथा गमनशीला नद्यः (प्रवणे) निम्नस्थाने (सस्रुः) गच्छन्ति (ऊतयः) रक्षणाद्याः (इन्द्रः) सभाद्यध्यक्षो विद्युद्वा (यत्) यः (वज्री) प्रशस्तो वज्रः शत्रुच्छेदकः शस्त्रसमूहो विद्यते यस्य सः (धृषमाणः) शत्रूणां धर्षणाऽऽकर्षणे प्रगल्भः (अन्धसा) अन्नादिनोदकादिना वा (भिनत्) भिनत्ति (बलस्य) बलवतः शत्रोर्मेघस्य वा। बल इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१०) (परिधींरिव) सर्वत उपरिस्था गोलरेखेव (त्रितः) उपरिरेखातो मध्यरेखातस्तिर्यग्रेखातश्च ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽऽपो निम्नस्थानं प्रतिगच्छन्ति, तथा सभाध्यक्षो नम्रो भूत्वा विनयं प्राप्नुयात् ॥ ५ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे जल निम्न स्थानी वाहते तसे सभाध्यक्षांनी नम्र बनून विनयी व्हावे. ॥ ५ ॥