Go To Mantra

आर्च॒न्नत्र॑ म॒रुतः॒ सस्मि॑न्ना॒जौ विश्वे॑ दे॒वासो॑ अमद॒न्ननु॑ त्वा। वृ॒त्रस्य॒ यद्भृ॑ष्टि॒मता॑ व॒धेन॒ नि त्वमि॑न्द्र॒ प्रत्या॒नं ज॒घन्थ॑ ॥

English Transliteration

ārcann atra marutaḥ sasminn ājau viśve devāso amadann anu tvā | vṛtrasya yad bhṛṣṭimatā vadhena ni tvam indra praty ānaṁ jaghantha ||

Mantra Audio
Pad Path

आर्च॑न्। अत्र॑। म॒रुतः॑। सस्मि॑न्। आ॒जौ। विश्वे॑। दे॒वासः॑। अ॒म॒द॒न्। अनु॑। त्वा॒। वृ॒त्रस्य॑। यत्। भृ॒ष्टि॒ऽमता॑। व॒धेन॑। नि। त्वम्। इ॒न्द्र॒। प्रति॑। आ॒नम्। ज॒घन्थ॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:52» Mantra:15 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:15


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर ईश्वरोपासक कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त सभा सेना के स्वामी (यत्) जो (त्वम्) आप (भृष्टिमता) प्रशंसनीय नीतिवाले न्यायव्यवहार से युक्त (वधेन) हनन से (वृत्रस्य) अधर्मी मनुष्य के समान (आनम्) प्राण को (जघन्थ) नष्ट करते हो, उन (त्वा) आपको (सस्मिन्) सब (आजौ) संग्राम वा (अत्र) इस आप में श्रद्धा करनेवाले (विश्वे देवासः) सब विद्वान् और (मरुतः) ऋत्विज् लोग (न्यार्चन्) नित्य सत्कार करते हैं, इससे वे प्रजा के प्राणी (प्रत्यन्वमदन्) सबको आनन्दित कर के आप आनन्दित होते हैं ॥ १५ ॥
Connotation: - जो एक परमेश्वर की उपासना विद्या को ग्रहण और शत्रुओं को ताड़कर प्रजा को निरन्तर आनन्दित करते हैं, वे ही धार्मिक विद्वान् सुखी रहते हैं ॥ १२ ॥ इस सूक्त में विद्वान्, बिजुली आदि अग्नि और ईश्वर के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तदुपासकाः कीदृशा भवेयुरित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे इन्द्र सभासेनेश यद्यस्त्वं भृष्टिमता वधेन वृत्रस्येव शत्रोरानं जीवनं जघन्थाऽहन् त्वा सस्मिन्नाजौ विश्वे देवासो मरुतो न्यार्चन् सततं सत्कुर्वन्तु, यतस्ते प्रजास्थाः प्राणिनः प्रत्यन्वमदन् प्रत्यक्षममाद्यन् ॥ १५ ॥

Word-Meaning: - (आर्चन्) अर्चन्तु (अत्र) अस्मिन् जगति (मरुतः) ऋत्विजः। मरुत इति ऋत्विङ्नामसु पठितम्। (निघं०३.१८) (सस्मिन्) सर्वस्मिन्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वा इति रेफवकारयोर्लोपः (आजौ) संग्रामे (विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (अमदन्) हृष्यन्तु (अनु) पुनरर्थे (त्वा) त्वां सभाध्यक्षम् (वृत्रस्य) मेघस्येव शत्रोः (यत्) यः (भृष्टिमता) भृज्जन्ति यया सा भृष्टिः कान्तिरिव नीतिः सा प्रशस्ता विद्यते यस्मिन् तेन (वधेन) हननेन (नि) नित्यम् (त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् (प्रति) प्रत्यक्षे (आनम्) अनन्ति येन तज्जीवनम् (जघन्थ) अहन् ॥ १५ ॥
Connotation: - य एकं परमेश्वरमुपास्य विद्यां गृहीत्वा शत्रून् जित्वा विजयं प्राप्य प्रजां नित्यमनुमोदयन्ति, ते विद्वांसः सुखिनो भवन्तीति ॥ १५ ॥ अत्र विद्वद्विद्युदाद्यग्नीश्वराणां गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदतिव्यम् ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे एका परमेश्वराची उपासना करतात व विद्येचे ग्रहण करतात, शत्रूंवर विजय प्राप्त करतात आणि प्रजेला सतत आनंदी ठेवतात तेच धार्मिक विद्वान सुखी होतात. ॥ १५ ॥