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त्वम॒स्य पा॒रे रज॑सो॒ व्यो॑मनः॒ स्वभू॑त्योजा॒ अव॑से धृषन्मनः। च॒कृ॒षे भूमिं॑ प्रति॒मान॒मोज॑सो॒ऽपः स्वः॑ परि॒भूरे॒ष्या दिव॑म् ॥

English Transliteration

tvam asya pāre rajaso vyomanaḥ svabhūtyojā avase dhṛṣanmanaḥ | cakṛṣe bhūmim pratimānam ojaso paḥ svaḥ paribhūr eṣy ā divam ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒स्य। पा॒रे। रज॑सः। विऽओ॑मनः। स्वभू॑तिऽओजाः। अव॑से। धृ॒ष॒त्ऽम॒नः॒। च॒कृ॒षे। भूमि॑म्। प्र॒ति॒ऽमान॑म्। ओज॑सः। अ॒पः। स्व१॒॑रिति॑ स्वः॑। प॒रि॒ऽभूः। ए॒षि॒। आ। दिव॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:52» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर इस समग्र जगत् का राजा परमात्मा कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (धृषन्मनः) अनन्त प्रगल्भ विज्ञानयुक्त जगदीश्वर ! जो (परिभूः) सब प्रकार होने (स्वभूत्योजाः) अपने ऐश्वर्य वा पराक्रम से युक्त (त्वम्) आप (अवसे) रक्षा आदि के लिये (अस्य) इस संसार के (रजसः) पृथिवी आदि लोकों तथा (व्योमनः) आकाश के (पारे) अपरभाग में भी (एषि) प्राप्त हैं और आप (ओजसः) पराक्रम आदि के (प्रतिमानम्) अवधि (स्वः) सुख (दिवम्) शुद्ध विज्ञान के प्रकाश (भूमिम्) भूमि और (अपः) जलों को (आचकृषे) अच्छे प्रकार स्थित किया है, उन आपकी हम सब लोग उपासना करते हैं ॥ १२ ॥
Connotation: - जैसे परमेश्वर सब से उत्तम, सबसे परे वर्त्तमान होकर सामर्थ्य से लोकों को रच के, उनमें सब प्रकार से व्याप्त हो धारण कर सब को व्यवस्था में युक्त करता हुआ जीवों के पाप-पुण्य की व्यवस्था करने से न्यायाधीश होकर वर्त्तता है, वैसे ही न्यायाधीश भी सब भूमि के राज्य को सम्पादन करता हुआ, सबके लिये सुखों को उत्पन्न करे ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरस्य जगतो राजेश्वरः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे धृषन्मनो जगदीश्वर ! यः परिभूः स्वभूत्योजास्त्वमवसेऽस्य संसारस्य रजसो व्योमनः पारेऽप्येषि त्वं सर्वेषामोजसः पराक्रमस्य स्वभूमिं चाप्रतिमानमाचकृषे समन्तात् कृतवानसि तं सर्वे वयमुपास्महे ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) परमेश्वरः (अस्य) संसारस्य क्लेशेभ्यः (पारे) अपरभागे (रजसः) पृथिव्यादिलोकानाम् (व्योमनः) आकाशस्य। अत्र वाच्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इत्यल्लोपो न भवति। (स्वभूत्योजाः) स्वकीया भूतिरैश्वर्यमोजः पराक्रमो वा यस्य सः (अवसे) रक्षणाद्याय (धृषन्मनः) धृषद्धृष्यते मनः सर्वस्यान्तःकरणं येन तत्सम्बुद्धौ (चकृषे) कृतवानसि (भूमिम्) सर्वाधारां क्षितिम् (प्रतिमानम्) प्रतिमीयते परिणीयते प्रतिक्रियते येन तत् (ओजसः) पराक्रमस्य (अपः) प्राणान् (स्वः) सुखमन्तरिक्षं वा (परिभूः) यः परितः सर्वतो भवति सः (एषि) प्राप्नोषि (आ) समन्तात् (दिवम्) विज्ञानप्रकाशम् ॥ १२ ॥
Connotation: - परमेश्वरः सर्वेभ्यः परः प्रकृष्टः सर्वेभ्यो दुःखेभ्यः पारे वर्त्तमानः सन् स्वसामर्थ्यात् सर्वान् लोकान् रचयित्वा तानभिव्याप्तः सन्सर्वान् व्यवस्थापयन् जीवानां पापपुण्यव्यवस्थाकरणेन न्यायाधीशः सन् वर्त्तते तथा सभेशो राज्यं कुर्वन् सर्वेभ्यः सुखं जनयेत् ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा परमेश्वर सर्वांत उत्तम, सगळ्यापेक्षा वेगळा असून आपल्या सामर्थ्याने त्याने गोलांची निर्मिती केलेली आहे व त्यात सर्व प्रकारे व्याप्त होऊन, धारण करून सर्वांना व्यवस्थेत युक्त करतो. न्यायाधीश बनून पाप-पुण्याची व्यवस्था करतो. तसेच न्यायाधीशानेही सर्व भूमीचे राज्य संपादन करून सर्वांसाठी सुख उत्पन्न करावे. ॥ १२ ॥