Go To Mantra

त्यं सु मे॒षं म॑हया स्व॒र्विदं॑ श॒तं यस्य॑ सु॒भ्वः॑ सा॒कमीर॑ते। अत्यं॒ न वाजं॑ हवन॒स्यदं॒ रथ॒मेन्द्रं॑ ववृत्या॒मव॑से सुवृ॒क्तिभिः॑ ॥

English Transliteration

tyaṁ su meṣam mahayā svarvidaṁ śataṁ yasya subhvaḥ sākam īrate | atyaṁ na vājaṁ havanasyadaṁ ratham endraṁ vavṛtyām avase suvṛktibhiḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

त्यम्। सु। मे॒षम्। म॒ह॒य॒। स्वः॒ऽविद॑म्। श॒तम्। यस्य॑। सु॒ऽभ्वः॑। सा॒कम्। ईर॑ते। अत्य॑म्। न। वाज॑म्। ह॒व॒न॒ऽस्यदम्। रथ॑म्। आ। इन्द्र॑म्। व॒वृ॒त्या॒म्। अव॑से। सु॒वृ॒क्तिऽभिः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:52» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बावनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र कैसा हो, इस विषय का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - (यस्य) जिस परमैश्वर्ययुक्त सभाध्यक्ष के (शतम्) असंख्यात (सुभ्वः) सुखों को उत्पन्न करनेवाले कारीगर लोग (सुवृक्तिभिः) दुःखों को दूर करनेवाली उत्तम क्रियाओं के (साकम्) साथ (अत्यम्) अश्व के (न) समान अग्नि जलादि से (अवसे) रक्षादि के लिये (हवनस्यदम्) सुखपूर्वक आकाश मार्ग में प्राप्त करनेवाले (वाजम्) वेगयुक्त (इन्द्रम्) परमोत्कृष्ट ऐश्वर्य के दाता (स्वर्विदम्) जिससे आकाश मार्ग से जा आ सकें, उस (रथम्) विमान आदि यान को (ईरते) प्राप्त होते हैं और जिससे मैं (ववृत्याम्) वर्त्तता हूँ (त्यम्) उस (मेषम्) सुख को वर्षानेवाले को हे विद्वान् मनुष्य ! तू उनका (सुमहय) अच्छे प्रकार सत्कार कर ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को जैसे अश्व को युक्त कर रथ आदि को चलाते हैं, वैसे अग्नि आदि से यानों को चला के कार्यों को सिद्ध कर सुखों को प्राप्त होना चाहिये ॥ १ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स इन्द्रः कीदृगित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यस्येन्द्रस्य सेनाध्यक्षस्य शतं सुभ्वो जनाः सुवृक्तिभिः साकमत्यमश्वं नेवावसे हवनस्यदं वाजमिन्द्रं स्वर्विदं रथमीरते, येनाहं ववृत्यां वर्त्तयेयं त्यन्तं मेषं त्वं सुमहय ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (त्यम्) तं सभाध्यक्षम् (सु) शोभने (मेषम्) सुखजलाभ्यां सर्वान् सेक्तारम् (महय) पूजयोपकुरु वा। अत्र अन्येषामपि दृश्यत इति दीर्घः। (स्वर्विदम्) स्वरन्तरिक्षं विन्दति येन तम् (शतम्) असंख्याताः (यस्य) इन्द्रस्य (सुभ्वः) ये जनाः सुष्ठु सुखं भावयन्ति ते। अत्र छन्दस्युभयथा (अष्टा०६.४.८७) इति यणादेशः। (साकम्) सह (ईरते) गच्छन्ति प्राप्नुवन्ति (अत्यम्) अश्वम्। अत्य इत्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४) (न) इव (वाजम्) वेगयुक्तम् (हवनस्यदम्) येन हवनं पन्थानं स्यन्दते तम् (रथम्) विमानादिकम् (आ) समन्तात् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तम् (ववृत्याम्) वर्त्तयेयम्, लिङ्प्रयोगोऽयम्। बहुलं छन्दसीत्यादिभिः द्वित्वादिकम् (अवसे) रक्षणाद्याय (सुवृक्तिभिः) सुष्ठु शोभना वृक्तयो दुःखवर्जनानि यासु क्रियासु ताभिः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या यथाऽश्वं नियोज्य रथादिकं चालयन्ति, तथैतैर्वह्न्यादिभिर्यानानि वाहयित्वा कार्याणि साधयेयुः ॥ १ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान, विद्युत इत्यादी, अग्नी व ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे घोडे रथाला जुंपून रथ चालविले जातात. तसे अग्नी इत्यादीद्वारे यान चालवून कार्य सिद्ध करावे व माणसांनी सुख प्राप्त करावे. ॥ १ ॥