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त्वं कुत्सं॑ शुष्ण॒हत्ये॑ष्वावि॒थार॑न्धयोऽतिथि॒ग्वाय॒ शम्ब॑रम्। म॒हान्तं॑ चिदर्बु॒दं नि क्र॑मीः प॒दा स॒नादे॒व द॑स्यु॒हत्या॑य जज्ञिषे ॥

English Transliteration

tvaṁ kutsaṁ śuṣṇahatyeṣv āvithārandhayo tithigvāya śambaram | mahāntaṁ cid arbudaṁ ni kramīḥ padā sanād eva dasyuhatyāya jajñiṣe ||

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Pad Path

त्वम्। कुत्स॑म्। शुष्ण॒ऽहत्ये॑षु। आ॒वि॒थ॒। अर॑न्धयः। अ॒ति॒थि॒ऽग्वाय॑। शम्ब॑रम्। म॒हान्त॑म्। चि॒त्। अ॒र्बु॒दम्। नि। क्र॒मीः॒। प॒दा। स॒नात्। ए॒व। द॒स्यु॒ऽहत्या॑य। ज॒ज्ञि॒षे॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:51» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में सभाध्यक्ष के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् शूरवीर मनुष्य ! जिससे (त्वम्) तू (पदा) पाद से आक्रान्त हुए शत्रुसमूह को मारनेवाले के (चित्) समान (शुष्णहत्येषु) शत्रुओं के बलों के हनने योग्य व्यवहारों में (महान्तम्) महागुणविशिष्ट (कुत्सम्) वज्रादि को धारण करके प्रजा की (आविथ) रक्षा करते और दुष्टों को (अरन्धयः) मारते हो (अतिथिग्वाय) अतिथियों के जाने-आने को शुद्ध मार्ग के लिये (अर्बुदम्) असंख्यात गुणविशिष्ट (शम्बरम्) बल को (नि क्रमीः) क्रम से बढ़ाते हो (सनात्) अच्छे प्रकार सेवन करने से (पदा) पदाक्रान्त शत्रुसेना का नाश करते हो (दस्युहत्याय) शत्रुओं के मारने रूप व्यवहार के लिये (एव) ही (जज्ञिषे) उत्पन्न हुए हो, इससे हम लोग आप का सत्कार करते हैं ॥ ६ ॥
Connotation: - सभाध्यक्षादिकों को योग्य है कि जैसे शत्रुओं को मार, श्रेष्ठों की रक्षा, मार्गों को शुद्ध और असंख्यात बल को धारण कर शत्रुओं के मारने के लिये अत्यन्त प्रभाव बढ़ावें ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरपि सभाध्यक्षगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे विद्वन् वीर ! यतस्त्वं पदा पदाक्रान्तं शत्रुसमूहं चिदिव शुष्णहत्येषु युद्धेषु महान्तं कुत्सं धृत्वा प्रजा आविथ शत्रूनरन्धयोऽतिथिग्वाय शुद्धमार्गायार्बुदं शम्बरं बलं निक्रमीः सनात्पदा दस्युहत्यायैव जज्ञिषे तस्मादस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) सभाध्यक्षः (कुत्सम्) वज्रादिशस्त्रसमूहम् (शुष्णहत्येषु) शुष्णानां बलानां हत्या हननं येषु संग्रामेषु। शुष्णमिति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (आविथ) रक्ष (अरन्धयः) हिन्धि (अतिथिग्वाय) अतिथीनां गमनाय। अत्रातिथ्युपपदाद् गम् धातोः बाहुलकाद् औणादिको ड्वः प्रत्ययः। (शम्बरम्) बलम्। शम्बरमिति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (महान्तम्) महागुणविशिष्टम् (चित्) इव (अर्बुदम्) असङ्ख्यातगुणविशिष्टम् (नि) नितराम् (क्रमीः) क्रमस्व (पदा) पादेन (सनात्) सम्भजनात् (एव) निश्चयार्थे (दस्युहत्याय) दस्यूनां हननं यस्मिन् व्यवहारे तस्मै (जज्ञिषे) जातोऽसि जातोऽस्ति वा ॥ ६ ॥
Connotation: - सभाद्यध्यक्षादिभिर्यथा सूर्यस्तथा शत्रून् हत्वा श्रेष्ठान् पालयित्वा शुद्धान् मार्गान् कृत्वाऽसंख्यातं बलं धृत्वा शत्रूणां हननाय प्रभावो वर्द्धनीयः ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सभाध्यक्षांनी शत्रूंना मारण्यासाठी व श्रेष्ठांच्या रक्षणाचे मार्ग निष्कंटक करण्यासाठी असंख्य बल धारण करावे व शत्रूंचे हनन करण्यासाठी आपला प्रभाव वाढवावा. ॥ ६ ॥