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तक्ष॒द्यत्त॑ उ॒शना॒ सह॑सा॒ सहो॒ वि रोद॑सी म॒ज्मना॑ बाधते॒ शवः॑। आ त्वा॒ वात॑स्य नृमणो मनो॒युज॒ आ पूर्य॑माणमवहन्न॒भि श्रवः॑ ॥

English Transliteration

takṣad yat ta uśanā sahasā saho vi rodasī majmanā bādhate śavaḥ | ā tvā vātasya nṛmaṇo manoyuja ā pūryamāṇam avahann abhi śravaḥ ||

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Pad Path

तक्ष॑त्। यत्। ते॒। उ॒शना॑। सह॑सा। सहः॑। वि। रोद॑सी॒ इति॑। म॒ज्मना॑। बा॒ध॒ते॒। शवः॑। आ। त्वा॒। वात॑स्य। नृ॒ऽम॒नः॒। म॒नः॒ऽयुजः॑। आ। पूर्य॑माणम्। अ॒व॒ह॒न्। अ॒भि। श्रवः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:51» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (नृमणाः) मनुष्यों में मन देनेवाले (उशना) कामयमान विद्वान् आप ! (सहसा) अपने सामर्थ्य से शत्रुओं के (सहः) बल का हनन कर के जैसे सूर्य (रोदसी) भूमि और प्रकाश को करता है, वैसे (मज्मना) शुद्ध बल से (शवः) शत्रुओं के बल को (विबाधते) विलोड़न वा (आतक्षत्) छेदन करते हो और (ते) आप के (मनोयुजः) मन से युक्त होनेवाले भृत्य (त्वा) आप का आश्रय ले के (ते) आप के (वातस्य) बलयुक्त वायु के सम्बन्धी (आपूर्यमाणम्) न्यूनतारहित (श्रवः) श्रवण और अन्नादि को (अभ्यावहन्) प्राप्त होवें ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् सभाध्यक्ष के विना पृथिवी के राज्य की व्यवस्था शत्रुओं के बल की हानि विद्यादि सद्गुणों का प्रकाश और उत्तम अन्नादि की प्राप्ति नहीं होती ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सभाध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे नृमणो विद्वन्नुशना ! भवान् सहसा शत्रूणां सहो हत्वा सूर्यो रोदसी भूमिप्रकाशाविव मज्मना स्वकीयेन शुद्धेन बलेन शवः शत्रूणां बलं विबाधत आतक्षच्च। मनोयुजो भृत्यास्त्वा त्वामाश्रित्य ते तव वातस्यापूर्यमाणं श्रवोऽभ्यवहन् समन्तात् प्राप्नुयुः ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (तक्षत्) तनूकरोति (यत्) (ते) तव (उशना) कामयमानः (सहसा) सामर्थ्येनाकर्षणेन वा (सहः) बलं सहनम् (वि) विशेषार्थे (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (मज्मना) शुद्धेन बलेन। मज्मेति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (बाधते) विलोडयति (शवः) बलम् (आ) समन्तात् (त्वा) त्वाम् (वातस्य) बलिष्ठस्य वायोरिव (नृमणः) नृषु नयनकारिषु मनो यस्य तत्सम्बुद्धौ (मनोयुजः) ये मनसा युज्यन्ते ते भृत्याः (आ) समन्तात् (पूर्य्यमाणम्) न्यूनतारहितम् (अवहन्) प्राप्नुयुः (अभि) आभिमुख्ये (श्रवः) श्रवणमन्नं वा ॥ १० ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि विदुषा सेनाध्यक्षेण विना पृथिवीराज्यव्यवस्था शत्रूणां बलहानिर्विद्यासद्गुणप्रकाशा उत्तमान्नादिप्राप्तिश्च जायते ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान सेनाध्यक्षाशिवाय पृथ्वीवरील राज्याची व्यवस्था, शत्रूंच्या बलाची हानी, विद्या इत्यादी सद्गुणांचा प्रकाश व उत्तम अन्न इत्यादींची प्राप्ती होत नाही. ॥ १० ॥