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उद॑गाद॒यमा॑दि॒त्यो विश्वे॑न॒ सह॑सा स॒ह । द्वि॒षन्तं॒ मह्यं॑ र॒न्धय॒न्मो अ॒हं द्वि॑ष॒ते र॑धम् ॥

English Transliteration

ud agād ayam ādityo viśvena sahasā saha | dviṣantam mahyaṁ randhayan mo ahaṁ dviṣate radham ||

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Pad Path

उत् । अ॒गा॒त् । अ॒यम् । आ॒दि॒त्यः । विश्वे॑न । सह॑सा । स॒ह । द्वि॒षन्त॑म् । मह्य॑म् । र॒न्धय॑न् । मो इति॑ । अ॒हम् । द्वि॒ष॒ते । र॒ध॒म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:50» Mantra:13 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:8» Mantra:8 | Mandal:1» Anuvak:9» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किस प्रकार प्रजाओं का पालन करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! यथा (अयम्) यह (आदित्यः) नाशरहित सूर्य्य (उदगात्) उदय को प्राप्त होता है वैसे तू (विश्वेन) अखिल (सहसा) बल के साथ उदित हो जैसे तू (मह्यम्) धार्मिक मनुष्य के (द्विषन्तम्) द्वेष करते हुए शत्रु को (रन्धयन्) मारता हुआ वर्त्तता है वैसे (अहम्) मैं (द्विषते) शत्रु के लिये वर्त्तूं जैसे यह शत्रु मुझ को मारता है वैसे इसको मैं भी मारूं जो मुझे न मारे उसे मैं भी (मोरधम्) न मारूं ॥१३॥
Connotation: - मनुष्यों को उचित है कि अनन्त बल युक्त परमेश्वर के बल के निमित्त प्राण वा बिजुली के दृष्टान्त से वर्त्त के सत्पुरुषों के साथ मित्रता कर सब प्रजाओं का पालन यथावत् किया करें ॥१३॥ इस सूक्त में परमेश्वर वा अग्नि के कार्य कारण के दृष्टान्त से राजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगती जाननी चाहिये ॥ यह आठवां ८ वर्ग नवम् ९ अनुवाक और पचासवां ५० सूक्त समाप्त हुआ ॥५०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(उत्) ऊर्ध्वे (अगात्) व्याप्नोति (अयम्) सभेशो विद्वान् (आदित्यः) नाशरहितः (विश्वेन) अखिलेन (सहसा) बलेन (सह) साकम् (द्विषन्तम्) शत्रुम् (मह्यम्) धार्मिकमनुष्याय (रन्धयन्) हिंसन् (मो) निषेधार्थे (अहम्) मनुष्यः (द्विषते) शत्रवे (रधम्) हिंसेयम् ॥१३॥

Anvay:

पुनर्मनुष्यैः कथं प्रजाः पालनीया इत्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! यथाऽयमादित्यउदगात्तथा त्वं विश्वेन सहासा सहऽस्मिन्राज्य उदिहि यथा त्वं मह्यं द्विषन्तं रन्धयन् प्रवर्त्तसे तथाऽहं प्रवर्त्तेय यथायं शत्रुर्मां हिनस्ति तथाहमप्यस्मै द्विषते रधं यो मां न हिंसेत्तमहं मोरधं न हिंसेयम् ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। मनुष्यैरनन्तबलजगदीश्वरस्य जलनिमित्तस्य प्राणवद्विद्युतो दृष्टान्तेन वर्त्तित्वा सज्जनैः सार्द्धं मित्रभावमाश्रित्य सर्वाः प्रजाः पालनीयाः ॥१३॥ अत्र परमेश्वराग्निकार्यकारणयोर्दृष्टान्तेन राजगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिरस्तीति वेदितव्यम्। इत्यष्टमो वर्गः ८ नवमोऽनुवाकः ९ पंचाशं सूक्तं च समाप्तम् ॥५०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी अनंत बलयुक्त परमेश्वराचे बल निमित्त असलेले प्राण व विद्युत यांचा दृष्टांत जाणून त्याप्रमाणे वागावे व सत्पुरुषाबरोबर मैत्री करून सर्व प्रजेचे यथायोग्य पालन करावे. ॥ १३ ॥