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अश्वा॑वती॒र्गोम॑तीर्विश्वसु॒विदो॒ भूरि॑ च्यवन्त॒ वस्त॑वे । उदी॑रय॒ प्रति॑ मा सू॒नृता॑ उष॒श्चोद॒ राधो॑ म॒घोना॑म् ॥

English Transliteration

aśvāvatīr gomatīr viśvasuvido bhūri cyavanta vastave | ud īraya prati mā sūnṛtā uṣaś coda rādho maghonām ||

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Pad Path

अश्व॑वतीः । गोम॑तीः । वि॒श्व॒सु॒विदः॑ । भूरि॑ । च्य॒व॒न्त॒ । वस्त॑वे । उत् । ई॒र॒य॒ । प्रति॑ । मा॒ । सू॒नृताः॑ । उ॒षः॒ । चो॒द॒ । राधः॑ । म॒घोना॑म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:48» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:9» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसी और क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - हे (उषः) उषा के सदृश स्त्री ! तू जैसे यह शुभगुणयुक्ता उषा है वैसे (अश्वावतीः) प्रशंसनीय व्याप्ति युक्त (गोमतीः) बहुत गौ आदि पशु सहित (विश्वसुविदः) सब वस्तुओं को अच्छे प्रकार जाननेवाली (सूनृताः) अच्छे प्रकार प्रियादियुक्त वाणियों को (वस्तवे) सुख में निवास के लिये (भूरि) बहुत (उदीरय) प्रेरणा कर और जो व्यवहारों से (च्यवन्त) निवृत्त होते हैं उनको (मघोनाम्) धनवानों के सकाश से (राधः) उत्तम से उत्तम धन को (चोद) प्रेरणा कर उनसे (मा) मुझे (प्रति) आनन्दित कर ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे अच्छी शोभित उषा सब प्राणियों को सुख देती है वैसे स्त्रियां अपने पतियों को निरन्तर सुख दिया करें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(अश्वावती) प्रशस्ता अश्वा विद्यन्ते यासान्ताः (गोमतीः) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यासां ताः (विश्वसुविदः) विश्वानि सर्वाणि सुष्ठुतया विदंति याभ्यस्ताः (भूरि) बहु (च्यवन्त) च्यवन्ते (वस्तवे) निवस्तुम् (उत्) उत्कृष्टार्थे (ईरय) गमय (प्रति) अभिमुख्ये (मा) माम् (सूनृताः) सुष्ठुसत्यप्रियवाचः (उषः) दाहगुणयुक्तोषर्वत् (चोद) प्रेरय (राधः) अनुत्तमं धनम् (मघोनाम्) धनवतां सकाशात् ॥२॥

Anvay:

पुनः सा कीदृशी किं करोतीत्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे उपरिव स्त्रि ! त्वमश्ववतीर्गोमतीर्विश्वसुविदः सूनृता वाचो वस्तवे भूर्युदीरय ये व्यवहारेभ्यश्च्यवन्त तेषां मघोनां सकाशाद्राधश्चोद प्रेरय ताभिर्मा प्रत्यानन्दय ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। यथा सुशुम्भमानोषाः सर्वान्प्राणिनः सुखयति तथा स्त्रियः पत्यादीन् सततं सुखयेयुः ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सुंदर उषा सर्व प्राण्यांना सुख देते तसे स्त्रियांनी आपल्या पतींना निरन्तर सुखी करावे. ॥ २ ॥