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उषो॒ यद॒द्य भा॒नुना॒ वि द्वारा॑वृ॒णवो॑ दि॒वः । प्र नो॑ यच्छतादवृ॒कं पृ॒थु च्छ॒र्दिः प्र दे॑वि॒ गोम॑ती॒रिषः॑ ॥

English Transliteration

uṣo yad adya bhānunā vi dvārāv ṛṇavo divaḥ | pra no yacchatād avṛkam pṛthu cchardiḥ pra devi gomatīr iṣaḥ ||

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Pad Path

उषः॑ । यत् । अ॒द्य । भा॒नुना॑ । वि । द्वारौ॑ । ऋ॒णवः॑ । दि॒वः । प्र । नः॒ । य॒च्छ॒ता॒त् । अ॒वृ॒कम् । पृ॒थु । छ॒र्दिः । प्र । दे॒वि॒ । गोम॑तीः । इषः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:48» Mantra:15 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:9» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - हे (देवि) दिव्य गुण युक्त स्त्री ! तू जैसे (उषाः) प्रभात समय (अद्य) इस दिन में (भानुना) अपने प्रकाश से (द्वारौ) गृहादि वा इन्द्रियों के प्रवेश और निकलने के निमित्त छिद्र (प्रार्णवः) अच्छे प्रकार प्राप्त होती और जैसे (नः) हम लोगों के लिये (यत्) (अवृकम्) हिंसक प्राणियों से भिन्न (पृथु) सब ऋतुओं के स्थान और अवकाश के योग्य होने से विशाल (छर्दिः) शुद्ध आच्छादन से प्रकाशमान घर है और जैसे (दिवः) प्रकाशादि गुण (गोमतीः) बहुत किरणों से युक्त (इषः) इच्छाओं को देती है वैसे (विप्रयच्छतात्) संपूर्ण दिया कर ॥१५॥ सं० भा० के अनुसार-(तू भली प्रकार)। सं०
Connotation: - इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे उषा अपने प्रकाश से अतीत वर्त्तमान और आनेवाले दिनों में सब मार्ग और द्वारों को प्रकाश करती है वैसे ही मनुष्यों को चाहिये कि सब ऋतुओं में सुख देनेवाले घरों को रच उनमें सब भोग्य पदार्थों को स्थापन और वह सब स्त्री के आधीन कर प्रतिदिन सुखी रहैं ॥१५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(उषः) उषर्वत्प्रकाशिके (यत्) या (अद्य) अस्मिन् दिने (भानुना) सदर्थप्रकाशकत्वेन (वि) विशेषार्थे (द्वारौ) गृहादींद्रिययोः प्रवेशनिर्गमनिमित्तौ (ऋणवः) ऋणुहि (दिवः) द्योतमानान् गुणान् (प्र) प्रकृष्टार्थे (नः) अस्मभ्यम् (यच्छतात्) देहि (अवृकम्) हिंसकप्राणिरहितम् (पृथु) सर्वर्त्तुस्थानाऽवकाशयोगेन विशालम् (छर्दिः) शुद्धाच्छादनादिना संदीप्यमानं गृहम्। छर्दिरिति गृहना०। निघं० ३।४। (प्र) प्रत्यक्षार्थे (देवि) दिव्यगुणे (गोमतीः) प्रशस्ताः स्वराज्ययुक्ता गावः किरणा विद्यन्ते यासु ताः (इषः) इच्छाः ॥१५॥

Anvay:

पुनः सा किं करोतीत्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे देवि स्त्रि ! त्वं यथोषा अद्य भानुना द्वारौ प्रिणवो यथा च नो यदवृकं पृथु छर्दिर्दिवो गोमतीरिषश्च तथा विप्रयच्छतात् ॥१५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालंकारः। यथोषाः स्वप्रकाशेन पूर्वस्मिन्नस्मिन्नागामिनि दिवसे सर्वान्मार्गान् द्वाराणि च प्रकाशयति तथा मनुष्यैः सर्वर्त्तुसुखप्रदानि गृहाणि रचयित्वा तत्र सर्वान्भोग्यान्पर्दार्थान्संस्थाप्यैतत्सर्वं कृत्वा प्रतिदिनं सुखयितव्यम् ॥१५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उषा भूत, वर्तमान, भविष्यात येणाऱ्या दिवशी आपल्या प्रकाशाने सर्व मार्ग व द्वार प्रकाशित करते. तसेच माणसांनी सर्व ऋतूत सुख देणारी घरे निर्माण करून त्यात सर्व भोग्य पदार्थ ठेवावेत व ते सर्व स्त्रियांच्या अधीन करून प्रतिदिनी सुख भोगावे. ॥ १५ ॥