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यु॒वोरु॒षा अनु॒ श्रियं॒ परि॑ज्मनोरु॒पाच॑रत् । ऋ॒ता व॑नथो अ॒क्तुभिः॑ ॥

English Transliteration

yuvor uṣā anu śriyam parijmanor upācarat | ṛtā vanatho aktubhiḥ ||

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Pad Path

यु॒वोः । उ॒षाः । अनु॑ । श्रिय॑म् । परि॑ज्मनोः । उ॒प॒आच॑रत् । ऋ॒ता । व॒न॒थः॒ । अ॒क्तुभिः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:46» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:35» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:9» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इन दोनों से क्या प्राप्त करें इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - हे (ऋता) उचित् गुण सुन्दरस्वरूप ! सभासेनापति ! जैसे (उषाः) प्रभात समय (अक्त्तुभिः) रात्रियों के साथ (उपाचरत्) प्राप्त होता है वैसे जिन (परिज्मनोः) सर्वत्र गमन कर्त्ता पदार्थों को प्रकाश से फेंकने हारे सूर्य्य और चन्द्रमा के सदृश वर्त्तमान (युवोः) आपका न्याय और रक्षा हमको प्राप्त होवे आप (श्रियम्) उत्तम लक्ष्मी को (अनुवनथः) अनुकूलता से सेवन कीजिये ॥१४॥
Connotation: - राजा और प्रजाजनों को चाहिये कि परस्पर प्रीति से बड़े ऐश्वर्य्य को प्राप्त होकर सदा सबके उपकार में यत्न किया करें ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(युवोः) सभासेनेशयोः (उषाः) सूर्य्याचन्द्रमसोः प्रातःप्रकाशः (अनु) पश्चादर्थे (श्रियम्) विद्याराजलक्ष्मीम् (परिज्मनोः) यः परितः सर्वतोऽजतः प्रक्षिपतो गच्छतस्तयोः (उपाचरत्) उपचारिणीव वर्त्तते (ऋता) ऋतौ यथार्थसुगुणस्वरूपौ। अत्र सुपांसुलुग् इत्याकारादेशः। (वनथः) संभजेथाम् (अक्तुभिः) रात्रिभिः। अक्तुरिति रात्रिना०। निघं० १।७। ॥१४॥

Anvay:

तयोः सकाशात्किंप्राप्नुयुरित्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे ऋता सभासेनाधिपती ! यथोषा अक्तुभिरुपाचरत्तथा ययोः परिज्मनोर्युवोर्न्यायो रक्षणं चोपाचरत् तौ युवां श्रियमनुवनथः ॥१४॥
Connotation: - राजप्रजाजना अन्योन्येषु प्रीतिं कृत्वा महदैश्वर्य्यं प्राप्य सदा सर्वोपकारे प्रयतंताम् ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा व प्रजा यांनी परस्पर प्रेमाने अत्यंत ऐश्वर्य प्राप्त करून सदैव सर्वांवर उपकार करण्याचा यत्न करावा. ॥ १४ ॥