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यो वा॒घते॒ ददा॑ति सू॒नरं॒ वसु॒ स ध॑त्ते॒ अक्षि॑ति॒ श्रवः॑ । तस्मा॒ इळां॑ सु॒वीरा॒ मा य॑जामहे सु॒प्रतू॑र्तिमने॒हस॑म् ॥

English Transliteration

yo vāghate dadāti sūnaraṁ vasu sa dhatte akṣiti śravaḥ | tasmā iḻāṁ suvīrām ā yajāmahe supratūrtim anehasam ||

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Pad Path

यः । वा॒घते॑ । ददा॑ति । सू॒नर॑म् । वसु॑ । सः । ध॒त्ते॒ । अक्षि॑ति । श्रवः॑ । तस्मै॑ । इळा॑म् । सु॒वीराम् । आ । य॒जा॒म॒हे॒ । सु॒प्रतू॑र्तिम् । अ॒ने॒हस॑म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:40» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वान् और अन्य मनुष्यों को एक दूसरे के साथ क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - (यः) जो मनुष्य (वाघते) विद्वान् के लिये (सूनरम्) जिससे उत्तम मनुष्य हों उस (वसु) धन को (ददाति) देता है और जिस (अनेहसम्) हिंसा के अयोग्य (सुप्रतूर्त्तिम्) उत्तमता से शीघ्र प्राप्ति कराने (सुवीराम्) जिससे उत्तम शूरवीर प्राप्त हों (इडाम्) पृथिवी वा वाणी को हम लोग (आयजामहे) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं उससे (सः) वह पुरुष (अक्षिति) जो कभी क्षीणता को न प्राप्त हो उस (श्रवः) धन और विद्या के श्रवण को (धत्ते) करता है ॥४॥
Connotation: - जो मनुष्य शरीर, वाणी, मन और धन से विद्वानों का सेवन करता है वही अक्षय विद्या को प्राप्त हो और पृथिवी के राज्य को भोग कर मुक्ति को प्राप्त होता है। जो पुरुष वाणी विद्या को प्राप्त होते हैं, वे विद्वान् दूसरे को भी पण्डित कर सकते हैं आलसी अविद्वान् पुरुष नहीं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(यः) मनुष्यः (वाघते) ऋत्विजे (ददाति) प्रयच्छति (सूनरम्) शोभना नरा यस्मात्तत् (वसु) धनम्। वस्विति धननामसु पठितम्। निघं० २।१०। (सः) मनुष्यः (धत्ते) धरति (अक्षिति) अविद्यमानाक्षितिः क्षयो यस्य तत् (श्रवः) शृण्वन्ति सर्वा विद्या येनान्नेन तत् (तस्मै) मनुष्याय (इडाम्) पृथिवीं वाणीं वा (सुवीराम्) शोभना वीरा यस्यां ताम् (आ) समंतात् (यजामहे) प्राप्नुयाम (सुप्रतूर्त्तिम्) सुष्ठु प्रकृष्ठा तूर्त्तिस्त्वरिता प्राप्तिर्यया ताम् (अनेहसम्) हिंसितुमनर्हां रक्षितुं योग्याम् ॥४॥

Anvay:

विद्वद्भिरितरैर्मनुष्यैश्च परस्परं किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - यो मनुष्यो वाघते सूनरं वसु ददाति यामनेहसं सुप्रतूर्त्तिं सुवीरामिडां वयमायजामहे तेन तया च सोऽक्षिति श्रवो धत्ते ॥४॥
Connotation: - यो मनुष्यः शरीरवाङ्मनोभिर्विदुषः सेवते स एवाक्षयां विद्यां प्राप्य पृथिवीराज्यं भुक्त्वा मुक्तिमाप्नोति। ये वाग्विद्यां प्राप्नुवंति ते विद्वांसोऽन्यान् विदुषः कर्त्तुं शक्नुवंति नेतरे ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो माणूस शरीर, वाणी, मन व धनाने विद्वानांचा स्वीकार करतो तोच अक्षय विद्या प्राप्त करून, पृथ्वीचे राज्य भोगून मुक्ती प्राप्त करतो. जे पुरुष वाणी विद्या प्राप्त करतात ते विद्वान दुसऱ्यालाही पंडित करू शकतात. आळशी अविद्वान पुरुष नाही. ॥ ४ ॥