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एमा॒शुमा॒शवे॑ भर यज्ञ॒श्रियं॑ नृ॒माद॑नम्। प॒त॒यन्म॑न्द॒यत्स॑खम्॥

English Transliteration

em āśum āśave bhara yajñaśriyaṁ nṛmādanam | patayan mandayatsakham ||

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Pad Path

आ। ई॒म्। आ॒शुम्। आ॒शवे॑। भ॒र॒। य॒ज्ञ॒ऽश्रिय॑म्। नृ॒ऽमाद॑नम्। प॒त॒यत्। म॒न्द॒यत्ऽस॑खम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:4» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:8» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:2» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

परमेश्वर प्रार्थना करने योग्य क्यों है, यह विषय अगले मन्त्र में प्रकाशित किया है-

Word-Meaning: - हे इन्द्र परमेश्वर ! आप अपनी कृपा करके हम लोगों के अर्थ (आशवे) यानों में सब सुख वा वेगादि गुणों की शीघ्र प्राप्ति के लिये जो (आशुम्) वेग आदि गुणवाले अग्नि वायु आदि पदार्थ (यज्ञश्रियम्) चक्रवर्त्ति राज्य के महिमा की शोभा (ईम्) जल और पृथिवी आदि (नृमादनम्) जो कि मनुष्यों को अत्यन्त आनन्द देनेवाले तथा (पतयत्) स्वामिपन को करनेवाले वा (मन्दयत्सखम्) जिसमें आनन्द को प्राप्त होने वा विद्या के जनानेवाले मित्र हों, ऐसे (भर) विज्ञान आदि धन को हमारे लिये धारण कीजिये॥७॥
Connotation: - ईश्वर पुरुषार्थी मनुष्य पर कृपा करता है, आलस करनेवाले पर नहीं, क्योंकि जब तक मनुष्य ठीक-ठीक पुरुषार्थ नहीं करता तब तक ईश्वर की कृपा और अपने किये हुए कर्मों से प्राप्त हुए पदार्थों की रक्षा में समर्थ कभी नहीं हो सकता। इसलिये मनुष्यों को पुरुषार्थी होकर ही ईश्वर की कृपा के भागी होना चाहिये॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

किमर्थः स इन्द्रः प्रार्थनीय इत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे इन्द्र परमेश्वर ! तव कृपयाऽस्मदर्थमाशव आशुं यज्ञश्रियं नृमादनं पतयत्स्वामित्वसम्पादकं मन्दयत्सखं विज्ञानादिधनं भर देहि॥७॥

Word-Meaning: - (आ) अभितः (ईम्) जलं पृथिवीं च। ईमिति जलनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) पदनामसु च। (निघं०४.२) (आशुम्) वेगादिगुणवन्तमग्निवाय्वादिपदार्थसमूहम्। आश्वित्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४) कृवापा०। (उणा०१.१) अनेनाशूङ्धातोरुण् प्रत्ययः। (आशवे) यानेषु सर्वानन्दस्य वेगादिगुणानां च व्याप्तये (भर) सम्यग्धारय प्रदेहि (यज्ञश्रियम्) चक्रवर्त्तिराज्यादेर्महिम्नः श्रीर्लक्ष्मीः शोभा। राष्ट्रं वा अश्वमेधः। (श०ब्रा०१३.१.६.३) अनेन यज्ञशब्दाद्राष्ट्रं गृह्यते। यज्ञो वै महिमा। (श०ब्रा०६.२.३.१८) (नृमादनम्) माद्यन्ते हर्ष्यन्तेऽनेन तन्मादनं नृणां मादनं नृमादनम् (पतयत्) यत्पतिं करोतीति पतित्वसम्पादकं तत्। तत् करोति तदाचष्टे इति पतिशब्दाण्णिच्। (मन्दयत्सखम्) मन्दयन्तो विद्याज्ञापकाः सखायो यस्मिंस्तत्॥७॥
Connotation: - ईश्वरः पुरुषार्थिनो मनुष्यस्योपरि कृपां दधाति नालसस्य। कुतः? यावन्मनुष्यः स्वयं पूर्णं पुरुषार्थं न करोति, नैव तावदीश्वरकृपाप्राप्तान् पदार्थान् रक्षितुमपि समर्थो भवति। अतो मनुष्यैः पुरुषार्थवद्भिर्भूत्वेश्वरकृपैष्टव्येति॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ईश्वर पुरुषार्थी माणसांवर कृपा करतो, आळशी माणसांवर नाही. कारण जोपर्यंत माणूस यथायोग्य पुरुषार्थ करीत नाही तोपर्यंत ईश्वराची कृपा व आपल्या कर्माने प्राप्त झालेल्या पदार्थांचे रक्षण करण्यासही समर्थ बनू शकत नाही. त्यासाठी माणसाने पुरुषार्थी बनून ईश्वरी कृपेस पात्र व्हावे. ॥ ७ ॥