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उ॒त नः॑ सु॒भगाँ॑ अ॒रिर्वो॒चेयु॑र्दस्म कृ॒ष्टयः॑। स्यामेदिन्द्र॑स्य॒ शर्म॑णि॥

English Transliteration

uta naḥ subhagām̐ arir voceyur dasma kṛṣṭayaḥ | syāmed indrasya śarmaṇi ||

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Pad Path

उ॒त। नः॒। सु॒भगा॑न्। अ॒रिः। वो॒चेयुः॑। द॒स्म॒। कृ॒ष्टयः॑। स्याम॑। इत्। इन्द्र॑स्य। शर्म॑णि॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:4» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मनुष्यों को कैसा स्वभाव धारण करना चाहिये, इस विषय का उपदेश ईश्वर ने अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हे (दस्म) दुष्टों को दण्ड देनेवाले परमेश्वर ! हम लोग। (इन्द्रस्य) आप के दिये हुए (शर्मणि) नित्य सुख वा आज्ञा पालने में (स्याम) प्रवृत्त हों, और ये (कृष्टयः) सब मनुष्य लोग प्रीति के साथ सब मनुष्यों के लिये सब विद्याओं को (वोचेयुः) उपदेश करें, जिससे सत्य के उपदेश को प्राप्त हुए (नः) हम लोगों को (अरिः) (उत) शत्रु भी (सुभगान्) श्रेष्ठ विद्या ऐश्वर्ययुक्त जानें वा कहें ॥६॥
Connotation: - जब सब मनुष्य विरोध को छोड़कर सब के उपकार करने में प्रयत्न करते हैं, तब शत्रु भी मित्र हो जाते हैं, जिससे सब मनुष्यों को ईश्वर की कृपा वा निरन्तर उत्तम आनन्द प्राप्त होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः कीदृशं शीलं धार्य्यमित्युपदिश्यते।

Anvay:

हे दस्म दुष्टस्वभावोपक्षेतर्जगदीश्वर ! वयं तवेन्द्रस्य शर्म्मणि खल्वाज्ञापालनाख्यव्यवहारे नित्यं प्रवृत्ताः स्याम। इमे कृष्टयः सर्वे मनुष्याः सर्वान् प्रति सर्वा विद्या वोचेयुरुपदिश्यासुर्य्यतः सत्योपदेशप्राप्तान्नोऽस्मानरिरुत शत्रुरपि सुभगान् जानीयाद्वदेच्च ॥६॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (नः) अस्मान् (सुभगान्) शोभनो विद्यैश्वर्य्ययोगो येषां तान्। भग इति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) (अरिः) शत्रुः (वोचेयुः) सम्प्रीत्या सर्वा विद्याः सर्वान्प्रत्युपदिश्यासुः। वचेराशिषि लिङि प्रथमस्य बहुवचने। लिङ्याशिष्यङ्। (अष्टा०३.१.८६) अनेन विकरणस्थान्यङ् प्रत्ययः। वच उम्। (अष्टा०७.४.२०)अनेनोमागमः। (दस्म) दुष्टस्वभावोपक्षेतः। ‘दसु उपक्षये’ इत्यस्मात् इषि युधीन्धिदसि०। (उणा०१.१४४) अनेन मक् प्रत्ययः। (कृष्टयः) मनुष्याः। कृष्टय इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) (स्याम) भवेम (इत्) एव (इन्द्रस्य) परमेश्वरस्य (शर्मणि) नित्यसुखे। शर्मेति सुखनामसु पठितम्। (निघं०३.६) ॥६॥
Connotation: - यदा सर्वे मनुष्या विरोधं विहाय सर्वोपकारकरणे प्रयतन्ते, तदा शत्रवोऽप्यविरोधिनो भवन्ति, यतः सर्वान्मनुष्यानीश्वरानुग्रहनित्यानन्दौ प्राप्नुतः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा सर्व माणसे विरोध सोडून सर्वांवर उपकार करण्याचा प्रयत्न करतात, तेव्हा शत्रूही मित्र बनतात. ज्यामुळे सर्व माणसांना ईश्वराच्या कृपेने निरन्तर उत्तम आनंद प्राप्त होतो. ॥ ६ ॥