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वा॒श्रेव॑ वि॒द्युन्मि॑माति व॒त्सं न मा॒ता सि॑षक्ति । यदे॑षां वृ॒ष्टिरस॑र्जि ॥

English Transliteration

vāśreva vidyun mimāti vatsaṁ na mātā siṣakti | yad eṣāṁ vṛṣṭir asarji ||

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Pad Path

वा॒श्राइ॑व । वि॒द्युत् । मि॒मा॒ति॒ । व॒त्सम् । न । मा॒ता । सि॒ष॒क्ति॒ । य॒त् । ए॒षा॒म् । वृ॒ष्टिः । अस॑र्जि॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:38» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

ये मनुष्य किसके समान क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! आप लोग (यत्) जो (एषाम्) इन वायुओं के योग से उत्पन्न हुई (विद्युत्) बिजुली (वाश्रेव) जैसे गौ अपने (वत्सम्) बछड़े को इच्छा करती हुई सेवन करती है वैसे (मिहम्‡) वृष्टि को (मिमाति) उत्पन्न करती और इच्छा करती हुई (माता) मान्य देनेवाली माता पुत्र का दूध से (सिवक्ति न) जैसे सींचती है वैसे पदार्थों को सेवन करती है जो (वृष्टिः) वर्षा को (असर्जि) करती है वैसे शुभ गुण कर्मों से एक दूसरों के सुख करने हारे हूजिये ॥८॥ ‡मिहम् इत्यस्य पूर्व मन्त्रादनुवृत्तिरायाति। सं०
Connotation: - इस मंत्र में दो उपमालङ्कार है। हे विद्वान् मनुष्यो ! तुम लोगों को उचित है कि जैसे अपने-२ बछड़ों को सेवन करने के लिये इच्छा करती हुई गौ और अपने छोटे बालक को सेवने हारी माता ऊंचे स्वर से शब्द करके उनकी ओर दौड़ती हैं वैसे ही बिजुली बड़े-२ शब्दों को करती हुई मेघ के अवयवों के सेवन करने के लिये दौड़ती है ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(वाश्रेव) यथा कामयमाना धेनुः (विद्युत्) स्तनयित्नुः (मिमाति) मिमीते जनयति। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (वत्सम्) स्वापत्यम् (न) इव (माता) मान्यप्रदा जननी (सिषक्ति) समेति सेवते वा। सिषक्तु सचत इति सेवमानस्य। निरु० ३।२१। (यत्) या (एषाम्) मरुतां संबन्धेन (वृष्टिः) अन्तरिक्षाञ्जलस्याधःपतनम् (असर्जि) सृज्यते। अत्र लडर्थे लुङ् ॥८॥

Anvay:

एते किंवत्किं कुर्युरित्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे मनुष्या यूयं यद्येषां विद्युद्वत्सं वाश्रेव मिहं‡ मिमाति कामयमाना माता पयसा पुत्रं सिषक्ति नेव यया वृष्टिरसर्जि सृज्यते तथैव परस्परं शुभगुणवर्षणेन सुखकारका भवत ॥८॥ ‡[ ]
Connotation: - अत्रोपमालंकारौ। यथा स्वस्ववत्सान् सेवितुं कामयमाना धेनवो मातरः स्वपुत्रान् प्रत्युश्चैः शब्दानुच्चार्य धावन्ति तथैव विद्युन्महाशब्दं कुर्वन्ती मेघावयवान्सेवितुं धावति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात दोन उपमालंकार आहे. हे विद्वान माणसांनो ! जशा आपल्या वासरांच्या मायेने त्यांच्याकडे धावत येणाऱ्या गाई आपल्या छोट्या वासरासाठी हंबरत येतात तशीच विद्युत, गर्जना करीत मेघाच्या अवयवांचा अंगीकार करण्यासाठी धावते. ॥ ८ ॥