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ये पृष॑तीभिर्ऋ॒ष्टिभिः॑ सा॒कं वाशी॑भिर॒ञ्जिभिः॑ । अजा॑यन्त॒ स्वभा॑नवः ॥

English Transliteration

ye pṛṣatībhir ṛṣṭibhiḥ sākaṁ vāśībhir añjibhiḥ | ajāyanta svabhānavaḥ ||

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Pad Path

ये । पृष॑तीभिः । ऋ॒ष्टिभिः॑ । सा॒कम् । वाशी॑भिः । अ॒ञ्जिभिः॑ । अजा॑यन्त । स्वभा॑नवः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:37» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे विद्वान् कैसे होने चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - (ये) जो (पृषतीभिः) पदार्थों को सींचने (ऋष्टिभिः) व्यवहारों को प्राप्त और (अञ्जिभिः) पदार्थों को प्रगट करानेवाली (वाशीभिः) वाणियों के (साकम्) साथ क्रियाओं के करने की चतुराई में प्रयत्न करते हैं वे (स्वभानवः) अपने ऐश्वर्य के प्रकाश से प्रकाशित (अजायन्त) होते हैं ॥२॥
Connotation: - हे विद्वान् मनुष्यो ! तुम लोगों को उचित है कि ईश्वर की रची हुई इस कार्य्य सृष्टि में जैसे अपने-२ स्वभाव के प्रकाश करनेवाले वायु के सकाश से जल की वृष्टि चेष्टा का करना अग्नि आदि की प्रसिद्धि और वाणी के व्यवहार अर्थात् कहना सुनना स्पर्श करना आदि सिद्ध होते हैं वैसे ही विद्या और धर्मादि शुभगुणों का प्रचार करो ॥२॥ मोक्षमूलर साहिब कहते हैं कि जो वे पवन चित्र विचित्र हरिण लोह की शक्ति तथा तलवारों और प्रकाशित आभुषणों के साथ उत्पन्न हुए हैं इति। यह व्याख्या असंभव है क्योंकि पवन निश्चय करके वृष्टि करानेवाली क्रिया तथा स्पर्शादि गुणों के योग और सब चेष्टा के हेतु होने से वाणी और अग्नि के प्रगट करने के हेतु हुए अपने आप प्रकाशवाले हैं और जो उन्होंने कहा हैं कि सायणाचार्य ने वाशी शब्द का व्याख्यान यथार्थ किया है सो भी असंगत है क्योंकि वह भी मंत्र पद और वाक्यार्थ से विरुद्ध है और जो मेरे भाष्य में प्रकरण पद वाक्य और भावार्थ के अनुकूल अर्थ है उसको विद्वान् लोग स्वयं विचार लेंगे कि ठीक है वा नहीं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(ये) मरुतइव विज्ञानशीला विद्वांसो जनाः (पृषतीभिः) पर्षन्ति सिञ्चन्ति धर्मवृक्षं याभिरद्भिः (ऋष्टिभिः) याभिः कलायन्त्रयष्टीभिर्ऋषन्ति जानन्ति प्राप्नुवन्ति व्यवहाराँस्ताभिः (साकम्) सह (वाशीभिः) वाणीभिः। वाशीति वाङ्नामसु पठितम्। निघं० १।११। (अञ्जिभिः) अञ्जन्ति व्यक्तीकुर्वन्ति पदार्थगुणान् याभिः क्रियाभिः (अजायन्त) धर्म्मक्रियाप्रचाराय प्रादुर्भवन्ति अत्र लडर्थे लङ्। (स्वभानवः) वायुवत्स्वभानवो ज्ञानदीप्तयो येषान्ते ॥२॥

Anvay:

पुनस्तैः कथं भवितव्यमित्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - ये पृषतीभिर्ऋष्टिभिरञ्जिभिर्वाशीभिः साकं क्रियाकौशले प्रयतन्ते ते स्वभानवोऽजायन्त ॥२॥
Connotation: - हे विद्वांसो मनुष्या युष्माभिरीश्वररचितायां सृष्टौ कार्यस्वभावप्रकाशस्य वायोःसकाशाज्जलसेचनं चेष्टाकरणमग्न्यादिप्रसिद्धिर्वायुव्यवहाराश्चार्थात् कथनश्रवणस्पर्शा भवन्ति तैः क्रियाविद्याधर्मादिशुभगुणाः प्रचारणीयाः ॥२॥ मोक्षमूलरोक्तिः। ये ते वायवो विचित्रैर्हरिणैरयोमयोभिः शक्तिभिरसिभिः प्रदीप्तैराभूषणैश्चसह जाता इत्यसंभवास्ति। कुतः। वायवो हि पृषत्यादीनां स्पर्शादीगुणानां च योगेन सर्वचेष्टाहेतुत्वेन च वागग्निप्रादुर्भावे हेतवः सन्तः स्वप्रकाशवन्तः सन्त्यतः। यच्चोक्तं सायणाचार्येण वाशीशब्दस्य व्याख्यानं समीचीनं कृतमित्यप्यलीकम्। कुतः। मंत्रपदवाक्यार्थविरोधात्। यश्च प्रकरणपदवाक्यभावार्थानुकूलोस्ति सोयमस्य मंत्रस्यार्थो द्रष्टव्यः ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वान माणसांनो! ईश्वराने निर्माण केलेल्या या कार्यसृष्टीत जसे आपापल्या स्वभावाला प्रकट करणाऱ्या वायूच्या साह्याने जलाची वृष्टी, प्रयत्नशीलता, अग्नीचे प्रकटीकरण व वाणीचा व्यवहार अर्थात बोलणे, ऐकणे, स्पर्श करणे इत्यादी सिद्ध होतात तसे तुम्ही विद्या व धर्म इत्यादी शुभ गुणांचा प्रचार करा. ॥ २ ॥
Footnote: मोक्षमूलर साहेब म्हणतात की, जे वायू चित्रविचित्र हरिण, लोखंडाची शक्ती, तलवारी व आभूषणाबरोबर उत्पन्न झालेले आहेत. ही व्याख्या अयोग्य आहे. कारण वायू निश्चित वृष्टी करविणारी क्रिया व स्पर्श इत्यादी गुणांचे योग व सर्व प्रयत्नाचे कारण असल्यामुळे वाणी व अग्नीला प्रकट करण्याचा हेतू असून स्वतः प्रकट होणारे आहेत व त्यांनी म्हटले आहे की, सायणाचार्यांनी वाशी शब्दाची व्याख्या यथार्थ केलेली आहे. तीही असंगत आहे. कारण तीही मंत्र, पद व वाक्यार्थाच्या विरुद्ध आहे. माझ्या भाष्यात प्रकरण, पद, वाक्य व भावार्थाच्या अनुकूल अर्थ आहे. त्याचा विद्वान लोक स्वतः विचार करतील की ती योग्य आहे की अयोग्य. ॥ २ ॥