त्वं नो॑ अग्ने पि॒त्रोरु॒पस्थ॒ आ दे॒वो दे॒वेष्व॑नवद्य॒ जागृ॑विः। त॒नू॒कृद्बो॑धि॒ प्रम॑तिश्च का॒रवे॒ त्वं क॑ल्याण॒ वसु॒ विश्व॒मोपि॑षे ॥
tvaṁ no agne pitror upastha ā devo deveṣv anavadya jāgṛviḥ | tanūkṛd bodhi pramatiś ca kārave tvaṁ kalyāṇa vasu viśvam opiṣe ||
त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। पि॒त्रोः। उ॒पऽस्थे॑। आ। दे॒वः। दे॒वेषु॑। अ॒न॒व॒द्य॒। जागृ॑विः। त॒नू॒ऽकृत्। बो॒धि॒। प्रऽम॑तिः। च॒। का॒रवे॑। त्वम्। क॒ल्या॒ण॒। वसु॑। विश्व॑म्। आ। ऊ॒पि॒षे॒ ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
अनवद्याग्ने सभास्वामिन् ! जागृविर्देवस्तनूकृत्त्वं देवेषु पित्रोरुपस्थे नोऽस्मानोपिषे वपसि सर्वतः प्रादुर्भावयसि। हे कल्याणप्रमतिस्त्वं कारवे मह्यं विश्वमाबोधि समन्ताद्बोधय ॥ ९ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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