त्वम॑ग्ने वृजि॒नव॑र्तनिं॒ नरं॒ सक्म॑न्पिपर्षि वि॒दथे॑ विचर्षणे। यः शूर॑साता॒ परि॑तक्म्ये॒ धने॑ द॒भ्रेभि॑श्चि॒त्समृ॑ता॒ हंसि॒ भूय॑सः ॥
tvam agne vṛjinavartaniṁ naraṁ sakman piparṣi vidathe vicarṣaṇe | yaḥ śūrasātā paritakmye dhane dabhrebhiś cit samṛtā haṁsi bhūyasaḥ ||
त्वम्। अ॒ग्ने॒। वृ॒जि॒नऽव॑र्तनिम्। नर॑म्। सक्म॑न्। पि॒प॒र्षि॒। वि॒दथे॑। वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒। यः। शूर॑ऽसाता। परि॑ऽतक्म्ये। धने॑। द॒भ्रेभिः॑। चि॒त्। सम्ऽऋ॑ता। हंसि॑। भूय॑सः ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब ईश्वर का उपासक वा प्रजा पालनेहारा पुरुष क्या-क्या कृत्य करे, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथेश्वरोपासकः प्रजारक्षकाः किं कुर्यादित्युपदिश्यते।
हे सक्मन् विचर्षणेऽग्नेसेनापते ! यो न्यायविद्यया प्रकाशमानस्त्वं विदथे शूरसातौ युद्धे दभ्रेभिरल्पैरपि साधनैर्वृजिनवर्त्तनिं नरं भूयसः शत्रूंश्च हंसि समृता समृतानि कर्माणि पिपर्षि स त्वं नः सेनाध्यक्षो भव ॥ ६ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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