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त्वम॑ग्ने॒ मन॑वे॒ द्याम॑वाशयः पुरू॒रव॑से सु॒कृते॑ सु॒कृत्त॑रः। श्वा॒त्रेण॒ यत्पि॒त्रोर्मुच्य॑से॒ पर्या त्वा॒ पूर्व॑मनय॒न्नाप॑रं॒ पुनः॑ ॥

English Transliteration

tvam agne manave dyām avāśayaḥ purūravase sukṛte sukṛttaraḥ | śvātreṇa yat pitror mucyase pary ā tvā pūrvam anayann āparam punaḥ ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ग्ने॒। मन॑वे। द्याम्। अ॒वा॒श॒यः॒। पु॒रू॒रव॑से। सु॒ऽकृते॑। सु॒कृत्ऽत॑रः। श्वा॒त्रेण॑। यत्। पि॒त्रोः। मुच्य॑से। परि॑। आ। त्वा॒। पूर्व॑म्। अ॒न॒य॒न्। आ। अप॑रम्। पुन॒रिति॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:31» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:32» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:7» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह ईश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) जगदीश्वर ! (सुकृत्तरः) अत्यन्त सुकृत कर्म करनेवाले (त्वम्) सर्वप्रकाशक आप (पुरूरवसे) जिसके बहुत से उत्तम-उत्तम विद्यायुक्त वचन हैं और (सृकृते) अच्छे-अच्छे कामों को करनेवाला है, उस (मनवे) ज्ञानवान् विद्वान् के लिये (द्याम्) उत्तम सूर्यलोक को (अवाशयः) प्रकाशित किये हुए हैं। विद्वान् लोग (श्वात्रेण) धन और विज्ञान के साथ वर्त्तमान (पूर्वम्) पूर्वकल्प वा पूर्वजन्म में प्राप्त होने योग्य और (अपरम्) इसके आगे जन्म-मरण आदि से अलग प्रतीत होनेवाले आपको (पुनः) बार-बार (अनयन्) प्राप्त होते हैं। हे जीव ! तू जिस परमेश्वर को वेद और विद्वान् लोग उपदेश से प्रतीत कराते हैं, जो (त्वा) तुझे (श्वात्रेण) धन और विज्ञान के साथ वर्त्तमान (पूर्वम्) पिछले (अपरम्) अगले देह को प्राप्त कराता है और जिसके उत्तम ज्ञान से मुक्त दशा में (पित्रोः) माता और पिता से तू (पर्यामुच्यसे) सब प्रकार के दुःख से छूट जाता तथा जिसके नियम से मुक्ति से महाकल्प के अन्त में फिर संसार में आता है, उसका विज्ञान वा सेवन तू (आ) अच्छे प्रकार कर ॥ ४ ॥
Connotation: - जिस जगदीश्वर ने सूर्य आदि जगत् रचा वा जिस विद्वान् से सुशिक्षा का ग्रहण किया जाता है उस परमेश्वर वा विद्वान् की प्राप्ति अच्छे कर्मों से होती है तथा चक्रवर्त्ति राज्य आदि धन का सुख भी वैसे ही होता है ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स ईश्वरः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने जगदीश्वर ! सुकृत्तरस्त्वं पुरूरवसे सुकृते मनवे द्यामवाशयः श्वात्रेण सह वर्त्तमानं त्वां विद्वांसः पूर्वं पुनरपरं चानयन् प्राप्नुवन्ति। हे जीव ! ये त्वां श्वात्रेण सह वर्त्तमानं पूर्वमपरं च देहं विज्ञापयन्ति यद्यतः समन्ताद् दुःखान्मुक्तो भवसि, यस्य च नियमेन त्वं पित्रोः सकाशान्महाकल्पान्ते पुनरागच्छसि, तस्य सेवनं ज्ञानं च कुरु ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) सर्वप्रकाशकः (अग्ने) परमेश्वर ! (मनवे) मन्यते जानाति विद्याप्रकाशेन सर्वव्यवहारं तस्मै ज्ञानवते मनुष्याय (द्याम्) सूर्य्यलोकम् (अवाशयः) प्रकाशितवान् (पुरूरवसे) पुरवो बहवो रवा शब्दा यस्य विदुषस्तस्मै। पुरूरवा बहुधा रोरूयते। (निरु०१०.४६) पुरूरवा इति पदनामसु पठितम् । (निघं०५.४) अनेन ज्ञानवान् मनुष्यो गृह्यते। अत्र पुरूपदाद् रु शब्द इत्यस्मात् पुरूरवाः। (उणा०४.२३७) इत्यसुन् प्रत्ययान्तो निपातितः। (सुकृते) यः शोभनानि कर्माणि करोति तस्मै (सुकृत्तरः) योऽतिशयेन शोभनानि करोतीति सः (श्वात्रेण) धनेन विज्ञानेन वा । श्वात्रमिति धननामसु पठितम् । (निघं०२.१०) पदनामसु च । (निघं०४.२) (यत्) यं यस्य वा (पित्रोः) मातुः पितुश्च सकाशात् (मुच्यसे) मुक्तो भवसि (परि) सर्वतः (आ) अभितः (त्वा) त्वां जीवम् (पूर्वम्) पूर्वकल्पे पूर्वजन्मनि वा वर्त्तमानं देहम् (पुनः) पश्चादर्थे ॥ ४ ॥
Connotation: - येन जगदीश्वरेण सूर्य्यादिकं जगद्रचितं येन विदुषा सुशिक्षा ग्राह्यते तस्य प्राप्तिः सुकृतैः कर्मभिर्भवति चक्रवर्त्तिराज्यादिधनस्य चेति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या जगदीश्वराने सूर्य इत्यादी जग निर्माण केलेले आहे व ज्या विद्वानाकडून सुशिक्षण मिळते त्या परमेश्वर व विद्वानाची प्राप्ती चांगल्या कर्मानेच होते आणि चक्रवर्ती राज्य इत्यादी धनाचे सुखही तसेच मिळते. ॥ ४ ॥