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व॒यं हि ते॒ अम॑न्म॒ह्यान्ता॒दा प॑रा॒कात्। अश्वे॒ न चि॑त्रे अरुषि॥

English Transliteration

vayaṁ hi te amanmahy āntād ā parākāt | aśve na citre aruṣi ||

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Pad Path

व॒यम्। हि। ते॒। अम॑न्महि। आ। अन्ता॑त्। आ। प॒रा॒कात्। अश्वे॑। न। चि॒त्रे॒। अ॒रु॒षि॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:21 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:31» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:21


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उस वेला को कैसी जाननी चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे कालविद्यावित् जन ! जैसे (वयम्) समय के प्रभाव को जाननेवाले हम लोग जो (चित्रे) आश्चर्यरूप (अरुषि) कुछ एक लाल गुणयुक्त उषा है, उस को (आ अन्तात्) प्रत्यक्ष समीप वा (आपराकात्) एक नियम किये हुए दूर देश से (अश्वे) नित्य शिक्षा के योग्य घोड़े पर बैठ के जाने आनेवाले के (न) समान (अमन्महि) जानें, वैसे इस को तू भी जान॥२१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान काल का यथायोग्य उपयोग लेने को जानते हैं, उनके पुरुषार्थ से समीप वा दूर के सब कार्य सिद्ध होते हैं। इससे किसी मनुष्य को कभी क्षण भर भी व्यर्थ काल खोना न चाहिये॥२१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा कीदृशी ज्ञातव्येत्युपदिश्यते॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा वयं या चित्रेऽरुष्यद्भुतता रक्तगुणाढ्यास्ति तामन्तादाभिमुख्यात् समीपस्थाद् देशादापराकाद् दूरदेशाच्चाश्वेनामन्महि तथा त्वमपि विजानीहि॥२१॥

Word-Meaning: - (वयम्) कालमहिम्नो वेदितारः (हि) निश्चये (ते) तव (अमन्महि) विजानीयाम। अत्र बहुलं छन्दसि इति श्यनोर्लुक्। (आ) मर्यादायाम् (पराकात्) दूरदेशात् (अश्वे) प्रतिक्षणं शिक्षिते तुरङ्गे (न) इव (चित्रे) आश्चर्य्यव्यवहारे (अरुषि) रक्तगुणप्रकाशयुक्ता॥२१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्या भूतभविष्यद्वर्त्तमानकालान् यथावदुपयोजितुं जानन्ति, तेषां पुरुषार्थेन दूरस्थसमीपस्थानि सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति। अतो नैव केनापि मनुष्येण क्षणमात्रोऽपि व्यर्थः कालः कदाचिन्नेय इति॥२१॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे भूत, भविष्य, वर्तमानकाळाचा योग्य उपयोग करून घेतात. ती पुरुषार्थ करून जवळचे व दूरचे कार्य सिद्ध करतात. त्यासाठी कोणत्याही माणसाने कधी क्षणभरही वेळ व्यर्थ घालवू नये. ॥ २१ ॥