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कस्त॑ उषः कधप्रिये भु॒जे मर्तो॑ अमर्त्ये। कं न॑क्षसे विभावरि॥

English Transliteration

kas ta uṣaḥ kadhapriye bhuje marto amartye | kaṁ nakṣase vibhāvari ||

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Pad Path

कः। ते॒। उ॒षः॒। क॒ध॒ऽप्रि॒ये॒। भु॒जे। मर्तः॑। अ॒म॒र्त्ये॒। कम्। न॒क्ष॒से॒। वि॒भा॒ऽव॒रि॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:20 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:31» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:20


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इस विद्या के उपयोग करनेवाले प्रातःकाल का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे विद्याप्रियजन ! जो यह (अमर्त्ये) कारण प्रवाह रूप से नाशरहित (कधप्रिये) कथनप्रिय (विभावरि) और विविध जगत् को प्रकाश करनेवाली (उषा) प्रातःकाल की वेला (भुजे) सुख भोग कराने के लिये प्राप्त होती है, उसको प्राप्त होकर तू (कम्) किस मनुष्य को (नक्षसे) प्राप्त नहीं होता और (कः) कौन (मर्त्तः) मनुष्य (भुजे) सुख भोगने के लिये (ते) तेरे आश्रय को नहीं प्राप्त होता॥२०॥
Connotation: - इस मन्त्र में काक्वर्थ है। कौन मनुष्य इस काल की सूक्ष्म गति जो व्यर्थ खोने के अयोग्य है, उसको जाने जो पुरुषार्थ के आरम्भ का आदि समय प्रातःकाल है, उसके निश्चय से प्रातःकाल उठ कर जब तक सोने का समय न हो, एक भी क्षण व्यर्थ न खोवे। इस प्रकार समय के सार्थपन को जानते हुए मनुष्य सब काल सुख भोग सकते हैं, किन्तु आलस्य करनेवाले नहीं॥२०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथैतद्विद्योपयोग्योषसः काल उपदिश्यते॥

Anvay:

हे विद्वन् ! येयममर्त्ये कधप्रिये विभावर्युषरुषा भुजे सुखभोगाय प्रत्यहं प्राप्नोति, तां प्राप्य त्वं कं मनुष्यं न नक्षसे प्राप्नोसि, को मर्तो भुजे ते तव सनीडं न प्राप्नोति॥२०॥

Word-Meaning: - (कः) वक्ष्यमाणः (ते) तव विदुषः (उषः) उषाः (कधप्रिये) कथनं कथा प्रिया यस्यां सा। अत्र वर्णव्यत्ययेन थकारस्य स्थाने धकारः। (भुजे) भुज्यते यः स भुक् तस्मै। अत्र कृतो बहुलम् इति कर्मणि क्विप्। (मर्तः) मनुष्यः (अमर्त्यः) कारणप्रवाहरूपेण नाशरहिता (कम्) मनुष्यम् (नक्षसे) प्राप्नोषि (विभावरि) विविधं जगत् भाति दीपयति सा विभावरि। अत्र वनो र च। (अष्टा०४.१.७) अनेन ङीप् रेफादेशश्च॥२०॥
Connotation: - अत्र काक्वर्थः। को मनुष्यः कालस्य सूक्ष्मां व्यर्थगमनानर्हां गतिं वेद, नहि सर्वो मनुष्यः पुरुषार्थारम्भस्य सुखाख्यामुषसं यथावज्जानाति, तस्मात्सर्वे मनुष्याः प्रातरुत्थाय यावन्नसुषुपुस्तावदेकं क्षणमपि कालस्य व्यर्थं न नयेयुः, एवं जानन्तो जनाः सर्वकालं सुखं भोक्तुं शक्नुवन्ति नेतरेऽलसाः॥२०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात काक्वर्थ आहे. कोण माणूस आहे जो काळाच्या सूक्ष्म गतीला व्यर्थ न जाऊ देता हे जाणतो की पुरुषार्थाचा आरंभ करण्याची सुरुवात प्रातःकाळ आहे. या निश्चयाने प्रातःकाळी उठून झोपण्याच्या वेळेपर्यंत एक क्षणही व्यर्थ घालवता कामा नये. त्यासाठी वेळेचे सार्थक जाणून माणसे सर्व काळी सुख भोगू शकतात; परंतु आळशी सुख भोगू शकत नाहीत. ॥ २० ॥