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आश्वि॑ना॒वश्वा॑वत्ये॒षा या॑तं॒ शवी॑रया। गोम॑द्दस्रा॒ हिर॑ण्यवत्॥

English Transliteration

āśvināv aśvāvatyeṣā yātaṁ śavīrayā | gomad dasrā hiraṇyavat ||

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Pad Path

आ। अ॒श्वि॒नौ॒। अश्व॑ऽवत्या। इ॒षा। या॒त॒म्। शवी॑रया। गोऽम॑त्। द॒स्रा॒। हिर॑ण्यऽवत्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:17 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:31» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हों, इसका अगले मन्त्र में प्रकाश किया है॥

Word-Meaning: - हे (दस्रा) दारिद्र्यविनाश करानेवाले (अश्विनौ) बिजली और पृथिवी के समान विद्या और क्रियाकुशल शिल्पी लोगो ! तुम (इषा) चाही हुई (अश्वावत्या) वेग आदि गुणयुक्त (शवीरया) देशान्तर को प्राप्त करानेवाली गति के साथ (हिरण्यवत्) जिसके सुवर्ण आदि साधन हैं और (गोमत्) जिसमें सिद्ध किये हुए धन से सुख प्राप्त करानेवाली बहुत सी क्रिया हैं, उस रथ को (आयातम्) अच्छे प्रकार देशान्तर को पहुँचाइये॥१७॥
Connotation: - पूर्वोक्त अश्वि अर्थात् सूर्य्य और पृथिवी के गुणों से चलाया हुआ रथ शीघ्र गमन से भूमि, जल और अन्तरिक्ष में पदार्थों को प्राप्त करता है, इसलिये इसको शीघ्र साधना चाहिये॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशौ स्त इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

हे विद्याक्रियाकुशलौ विद्वांसौ शिल्पिनौ दस्रावश्विनौ सभासेनास्वामिनौ द्यावापृथिव्याविवेषाभीष्टयाऽश्ववत्या शवीरया गत्या हिरण्यवद् गोमद् यानमायातं समन्ताद्देशान्तरं प्रापयतम्॥१७॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (अश्विनौ) यथा द्यावापृथिव्यादिकद्वन्द्वं तथा विद्याक्रियाकुशलौ (अश्वावत्या) वेगादिगुणसहितया। अत्र मन्त्रे सोमाश्वेन्द्रियविश्व० (अष्टा०६.३.१३१) अनेन पूर्वपदस्य दीर्घः। (इषाः) इष्यते यया। अत्र कृतो बहुलम् इति करणे क्विप्। (यातम्) प्रापयतम् (शवीरया) देशान्तरप्रापिकया गत्या शु गतावित्यस्माद्धातोर्बाहुलकादौणादिक ईरन् प्रत्ययः। (गोमत्) गावः सुखप्रापिका बह्व्यो विद्यन्ते यस्मिंस्तत्। गौरिति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.५) अनेन प्राप्त्यर्थो गृह्यते। अत्र भूम्न्यर्थे मतुप्। (दस्रा) दारिद्र्योपक्षयहेतू। अत्र सुपां सुलुग्० इति आकारादेशः (हिरण्यवत्) हिरण्यं सुवर्णादिकं बहुविधं साधने यस्य तत्। अत्र भूम्न्यर्थे मतुप्॥१७॥
Connotation: - पूर्वोक्ताभ्यामश्विभ्यां चालितं यानं शीघ्रगत्या भूमौ जलेऽन्तरिक्षे च गच्छति तस्मादेतत्सद्यः साध्यम्॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - पूर्वोक्त अश्वि अर्थात सूर्य व पृथ्वीच्या गुणांनी चालविला जाणारा रथ तात्काळ गमन करून भूमी, जल व अंतरिक्षातील पदार्थ प्राप्त करतो. त्यासाठी तो त्वरित तयार केला पाहिजे. ॥ १७ ॥