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अ॒स्माकं॑ शि॒प्रिणी॑नां॒ सोम॑पाः सोम॒पाव्ना॑म्। सखे॑ वज्रि॒न्त्सखी॑नाम्॥

English Transliteration

asmākaṁ śipriṇīnāṁ somapāḥ somapāvnām | sakhe vajrin sakhīnām ||

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Pad Path

अ॒स्माक॑म्। शि॒प्रिणी॑नाम्। सोम॑ऽपाः। सो॒म॒ऽपाव्ना॑म्। सखे॑। व॒ज्रि॒न्। सखी॑नाम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:30» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सभा सेनाध्यक्ष के प्राप्त होने की इच्छा करने का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे (सोमपाः) उत्पन्न किये हुए पदार्थ की रक्षा करनेवाले (वज्रिन्) सब अविद्यारूपी अन्धकार के विनाशक उत्तम ज्ञानयुक्त (सखे) समस्त सुख देने और (सोमपाव्नाम्) सांसारिक पदार्थों की रक्षा करनेवाले (सखीनाम्) सबके मित्र हम लोगों के तथा (सखीनाम्) सबका हित चाहनेहारी वा (शिप्रिणीनाम्) इस लोक और परलोक के व्यवहार ज्ञानवाली हमारी स्त्रियों को सब प्रकार से प्रधान (त्वा) आप को (वयम्) करनेवाले हम लोग (आशास्महे) प्राप्त होने की इच्छा करते हैं॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है और पूर्व मन्त्र से (त्वा) (वयम्) (आ) (शास्महे) इन चार पदों की अनुवृत्ति है। सब पुरुष वा सब स्त्रियों को परस्पर मित्रभाव का वर्त्ताव कर व्यवहार की सिद्धि के लिये परमेश्वर की प्रार्थना वा आर्य्य राजविद्या और धर्म सभा प्रयत्न के साथ सदा सम्पादन करनी चाहिये॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सभासेनाध्यक्षप्राप्तीच्छाकरणमुपदिश्यते॥

Anvay:

हे सोमपा वज्रिन् ! सोमपाव्नां सखीनामस्माकं सखीनां शिप्रिणीनां स्त्रीणां च सर्वप्रधानं त्वा त्वां वयमाशास्महे प्राप्तुमिच्छामः॥११॥

Word-Meaning: - (अस्माकम्) विदुषां सकाशाद् गृहीतोपदेशानाम् (शिप्रिणीनाम्) शिप्रे ऐहिकपारमार्थिकव्यवहारज्ञाने विद्येते यासां ता विदुष्यः स्त्रियस्तासाम्। शिप्रे इति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.३)। अनेनात्र ज्ञानार्थो गृह्यते। (सोमपाः) सोमान् उत्पादितान् कार्याख्यान् पदार्थान् पाति रक्षति तत्संबुद्धौ (सोमपाव्नाम्) सोमानां पावनो रक्षकास्तेषाम् (सखे) सर्वसुखप्रद (वज्रिन्) वज्रोऽविद्यानिवारकः प्रशस्तो बोधो विद्यते यस्य तत्संबुद्धौ। अत्र व्रजेर्गत्यर्थाज्ज्ञानार्थे प्रशंसायां मतुप्। (सखीनाम्) सर्वमित्राणां पुरुषाणां सखीनां स्त्रीणां वा॥११॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। पूर्वस्मान्मन्त्रात् (त्वा) (वयम्) (आ) (शास्महे) इति पदचतुष्टयाऽनुवृत्तिः। सर्वैः पुरुषैः सर्वाभिः स्त्रीभिश्च परस्परं मित्रतामासाद्य परमेश्वरोपासनाऽऽर्यराजविद्या धर्मसभा सर्वव्यवहारसिद्धिश्च प्रयत्नेन सदैव सम्पादनीया॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. पूर्वीच्या मंत्राने (त्वा) (वयम्)(आ) (शास्महे) या चार पदांची अनुवृत्ती होते. सर्व पुरुष व सर्व स्त्रियांनी परस्पर मैत्रीचे वर्तन करून व्यवहार सिद्धीसाठी परमेश्वराची प्रार्थना आर्य राजविद्या व धर्मसभा सदैव प्रयत्नपूर्वक संपादन करावी. ॥ ११ ॥